• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

बुधवार, 11 नवंबर 2020

महिला स्वतंत्रता सेनानी नारायणी देवी वर्मा (NARAYANI DEVI VARMA)

महिला स्वतंत्रता सेनानी नारायणी देवी वर्मा 

▶ नारायणी देवी का जन्म मध्य प्रदेश के सिंगोली गांव् में रामसहाय भटनागर के यहाँ हुआ। 

▶बारह वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह  माणिक्यलाल वर्मा के साथ कर दिया गया ।

▶किसानों व आम जनता पर राजा जागीरदारों के अत्याचार देखकर माणिक्यलाल वर्मा ने आजीवन किसानों, दलितों व गरीबों को सेवा का संकल्प लिया तो नारायणी देवी इस व्रत में उनकी सहयोगिनी बनी। 

▶माणिक्यलाल वर्मा के जेल जाने पर परिवार के पालन- पोषण के साथ ही नारायणी देवी ने घर-मोहल्लों में जाकर लोगों को पढ़ाना एवं शोषण के खिलाफ महिलाओं को तैयार करने के कार्य किये।

▶नारायणी देवी अपनी सहयोगिनियों के साथ घर-घर जागृति संदेश पहुँचाती और लोगों को बेगार, नशा प्रथा एवं बाल-विवाह के विरुद्ध आवाज उठाने एवं संगठित होकर कार्य करने की प्रेरणा देती।उन्होंने डूंगरपुर रियासत में खड़लाई में भीलों के मध्य शिक्षा प्रसार द्वारा जागृति पैदा करने का कार्य भी किया। 

▶1939 ई. में प्रजामण्डल के कार्यों में भाग लेने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण नारायणी देवी को पुनः जेल जाना पड़ा। 

▶1944 ई. में वे भीलवाड़ा आ गई और यहाँ 14 नवम्बर, 1944 को महिला आश्रम संस्था की स्थापना की। यहाँ प्रौढ़ शिक्षा व प्रसूति गृह का संचालन भी किया। 

▶ वे 1970 से 1976 ई. तक राज्यसभा की सदस्य रहीं। 

12 मार्च, 1977 को उनकी मृत्यु हुई।

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अलवर प्रजामण्डल आन्दोलन (ALWAR PRAJAMANDAL AANDOLAN)

अलवर प्रजामण्डल आन्दोलन 

▶1933 ई. में अलवर में कांग्रेस समिति की स्थापना हुई  | इसी कांग्रेस समिति का नाम 1938 ई. में हरिनारायण शर्मा और कुंज बिहारी लाल मोदी ने 'अलवर राज्य प्रजामण्डल' कर दिया। 

▶1938 ई. में प्रजामण्डल ने स्कूलों में फीस वृद्धि का विरोध करते हुए उत्तरदायी शासन स्थापना की मांग की। फलतः हरिनारायण शर्मा सहित कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। मगर प्रजामण्डल कार्यकर्ताओं ने नुक्कड़ सभाओं द्वारा जनजागृति का कार्य जारी रखा। 

▶अगस्त, 1940 में सरकार ने प्रजामण्डल का पंजीकरण कर लिया। पंजीकरण होते ही प्रजामण्डल ने राजगढ़, तिजारा, खैरथल, रामगढ़ आदि में अपनी शाखाएं स्थापित कर जन चेतना का कार्य शुरू कर दिया।

▶1942 ई. के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रजामण्डल ने उत्तरदायी शासन स्थापना की मांग को लेकर आंदोलन चलाया तथा सभाओं एवं प्रदर्शनों के द्वारा राज्य की नीतियों एवं शासन व्यवस्था के विरुद्ध रोष प्रकट किया। सरकार ने प्रजामण्डल कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस कर आंदोलन को दबाने का प्रयास किया, मगर विफल रही। 

▶1948 ई. तक उत्तरदायी शासन स्थापना की मांग को लेकर प्रजामण्डल और राज्य सरकार के मध्य गतिरोध बना रहा। 

▶1 फरवरी, 1948 को भारत सरकार द्वारा अलवर राज्य का शासन अपने हाथ में लेने के साथ ही प्रजामण्डल को माँग समाप्त हो गई। 

▶18 मार्च, 1948 को अलवर 'मत्स्य संघ का हिस्सा बन गया।

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राजस्थान के भूमिज शैली के मंदिर (Bhumij Shaili Temple of Rajasthan)

राजस्थान के भूमिज शैली के मंदिर 

▶ भूमिज शैली मंदिर निर्माण की नागर शैली की उपशैली है। 

▶ इस शैली की विशेषता मुख्यतः उसके शिखर में परिलक्षित है। इस शिखर के चारों और प्रमुख दिशाओं में तो लतिन या एकान्डक शिखर की भाँति, ऊपर से नीचे तक चैत्यमुख डिजायन वाले जाल की लतायें या पट्टियाँ रहती हैं लेकिन इसके बीच में चारों कोणों में, नीचे से ऊपर तक क्रमशः घटते आकार वाले छोटे-छोटे शिखरों की लड़ियाँ भरी रहती हैं। 


▶ राजस्थान में भूमिज शैली का सबसे पुराना मंदिर पाली जिले में सेवाड़ी का जैन मंदिर (लगभग 1010-20 ई.) है।

▶ इसके बाद मैनाल का महानालेश्वर मंदिर ( 1075 ई.) है, जो पंचरथ व पंचभूम है। यह मंदिर पूर्णतः अखंडित है व अपने श्रेष्ठ अनुपातों के लिए दर्शनीय है। 

▶ रामगढ़ (बारां) का भण्ड देवरा व बिजौलिया का उंडेश्वर मंदिर (लगभग 1125 ई.) दोनों गोल व सप्तरथ हैं। रामगढ़ मंदिर सप्तभूम है जबकि उंडेश्वर नवभूम है। रामगढ़ मंदिर अपनी पीठ की सजावट, मण्डप व स्तम्भों की भव्यता व मूर्तिशिल्य के लिए दर्शनीय है। 

▶ झालरापाटन का सूर्य मंदिर सप्तरथ व सप्तभूम है लेकिन उसकी लताओं में अनेकाण्डक शिखरों की भांति उरहश्रृंग जोड़ दिये गए हैं। 

सूर्य मंदिर झालरापाटन

▶  रणकपुर का सूर्य मंदिर व चित्तौड़ का अद्भुत नाथ मंदिर भी भूमिज शैली के हैं।


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मंगलवार, 10 नवंबर 2020

विश्व के प्रमुख देशो के राष्ट्रीय प्रतीक National symbols of major countries of the world

 विश्व के प्रमुख देशो के राष्ट्रीय प्रतीक National symbols of major countries of the world

 विश्व के प्रमुख देशो के राष्ट्रीय प्रतीक

क्रम संख्या

देश

प्रतीक

1

भारत

अशोक चक्र

2

फ्रांस

लिली

3

बेल्जियम

शेर

4

डेनमार्क

बीच

5

चिली

कंडोर एवं ह्युमुल

6

कनाडा

मैपल पक्षी

7

यूनाइटेड किंगडम

सफ़ेद लिली

8

ईरान

गुलाब का फूल

9

आस्ट्रेलिया

वैटल

10

बांगलादेश

कँवल(वाटर लिली)

11

स्पेन

जिम्बाबे पक्षी

12

रूस

शेर

13

सीरिया

चाँद तारा

14

तुर्की

शेर

15

नीदरलैंड

फर्न ,कीवी

16

नार्वे

शेर

17

पाकिस्तान

चमेली का फूल

18

सूडान

ईगल

19

आयरलैंड

हार्प

20

लेबनान

सीडर पक्षी

21

इटली

सफ़ेद लिली

22

जर्मनी

ईगल

23

मगोलिया

ईगल

24

इजरायल

कैंडलाबुम

 


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क्रांतिकारी ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु(Krantikari Jwala Prasad Jigyashu)

क्रांतिकारी ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु

▶ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु ने धौलपुर में 'आर्य समाज' के माध्यम से समाज सुधार एवं राष्ट्रीय चेतना पैदा करने का कार्य किया।

▶1934 ई. में जौहरी लाल इन्दु के साथ मिलकर इन्होंने 'नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना की। इन्होंने हरिजन सेवा का कार्य भी किया तथा सरकारी व सार्वजनिक विद्यालयों में हरिजन बालकों के पढ़ने पर रुकावट को दूर करवाया।

▶ 1938 ई. में ज्वाला प्रसाद और जौहरी लाल इन्दु ने मिलकर धौलपुर प्रजामण्डल' की स्थापना की। प्रजामण्डल का उद्देश्य उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था। राज्य के दमन के फलस्वरूप ज्वाला प्रसाद ने आगरा से आंदोलन का संचालन किया।

▶1942 ई. के 'भारत छोड़ो' आन्दोलन के दौरान धौलपुर में कांग्रेस की स्थापना की गयी। 'तरवीभरा' गाँव में कांग्रेस की एक सभा में राज्याधिकारियों ने गोली चला दी जिसके फलस्वरूप 'ठाकुर छत्रसिंह' एवं 'पंचमसिंह' घटना स्थल पर ही शहीद हो गए। जिज्ञासु की राजनीतिक गतिविधियों के कारण राज्य सरकार ने इनके परिवार को तंग किया। फिर भी ज्वाला प्रसाद धौलपुर की जनता के लिए संघर्ष करते रहे।


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सोमवार, 9 नवंबर 2020

कविराजा बांकीदास जी आसिया का जीवन परिचय (Biography Bankidas Ji Asiya)

कविराजा बांकीदास जी आसिया का जीवन परिचय (Biography Bankidas Ji Asiya)

बांकीदास जी आसिया

▶बांकीदास जी का जन्म आसिया शाखा के चारण वंश में पचपदरा परगने के भांडीयावास गाँव में हुआ।

▶रामपुर के ठाकुर अर्जुनसिंह ने इनकी शिक्षा का प्रबन्ध जोधपुर में किया। यहाँ बांकीदास जी जोधपुर महाराजा मानसिंह के गुरु देवनाथ के सम्पर्क में आये, जिन्होंने इनका परिचय मानसिंह से कराया। मानसिंह ने इनकी विद्वता से प्रभावित होकर प्रथम भेंट में ही इन्हें 'लाख पसाव' पुरस्कार से सम्मानित किया।

▶बांकीदास जी डिंगल, पिंगल, संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे। आशु कवि के रूप में उनकी प्रसिद्धि पूरे राजपूताना में थी।

▶बांकीदास जी में स्वाभिमान एवं निर्भीकता के गुण विद्यमान थे। उन्होंने राजकुमार छत्रसिंह को शिक्षा देने में असमर्थता व्यक्त कर दी, क्योंकि वह अयोग्य था।

▶इन्होने महाराजा मानसिंह को नाथ सम्प्रदाय के बढ़ते हुए प्रभाव के प्रति आगाह किया, जिससे मानसिंह क्रोधित हो गया। स्वाभिमानी बांकीदासजी ने जोधपुर छोड़ दिया, जिसे महाराजा ने ससम्मान वापस बुलवाया।

▶बांकीदासजी इतिहास को वार्ता द्वारा व्यक्त करने में प्रवीण थे। एक ईरानी सरदार ने अपनी जोधपुर यात्रा के दौरान किसी इतिहासवेत्ता से मिलने की इच्छा प्रकट की तो, महाराजा मानसिंह ने उसे बांकीदास जी से मिलवाया। बांकीदास जी से वार्ता के बाद उसने स्वीकार किया कि ईरान के इतिहास का ज्ञान मुझसे कहीं अधिक बांकीदासजी को है।

▶19 जुलाई, 1933 को जोधपुर में बांकीदास की मृत्यु हो गई।

▶बांकीदास जी द्वारा लिखे गये 36 काव्य ग्रन्थ प्राप्त हैं। जिनमें सूर छत्तीसी, गंगालहरी, वीर विनोद आदि महत्त्वपूर्ण हैं। किन्तु बांकीदास की महत्त्वपूर्ण कृति 'ख्यात' है। |

▶1956 ई. में नरोत्तमदास स्वामी ने बांकीदासजी की ख्यात को प्रकाशित किया। ख्यात दो प्रकार से लिखी हुई प्राप्त होती है संलग्न और फुटकर ख्यात। प्रथम प्रकार को ख्यात में विषय क्रमबद्ध और निरन्तर रहता है, जबकि द्वितीय प्रकार की ख्यात म विषय विश्रृंखल, अलग-अलग और बातों के रूप में मिला है।

▶बांकीदासजी की ख्यात में लिखी 'ऐतिहासिक-बातें' संक्षिप्त लिपि अथवा तार की संक्षिप्त भाषा के समान लिखी हई वहद विषय की सचना स्रोत हैं, जैसे बात संख्या 2774-जीवनसिंध पाहाड़ दिली राज कियो" इनकी ख्यात में कुल बातों की संख्या 2776 है। इन बातों से राजस्थान के इतिहास के साथ पडोसी राज्यों के इतिहास सम्बन्धी तथा मराठा, सिक्ख, जोगी, मुसलमान, फिरंगी आदि की ऐतिहासिक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। सर्वाधिक विवरण मारवाड तथा देश के अन्य राठौड राज्यों के सम्बन्ध में है। मेवाड़ की राजनीतिक घटनाओं का भी ख्यात में वर्णन मिलता है। गहलोतों के साथ ही यादवों की बात, कछवाहों की बात, पड़िहारों की बात, चौहानों की बात में अलगअलग राज्यों के इतिहास वृत्तान्तों की सूचनाएँ संगृहीत हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न जातियों, धार्मिक तथा फुटकर विषयक बातों के साथ-साथ भौगोलिक बातों का समावेश ख्यात की मुख्य विशेषता है। वस्तुतः बांकीदास की ख्यात इतिहास का खजाना है।




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शनिवार, 7 नवंबर 2020

राजस्थान कि क्षेत्रीय बोलियाँ Regional dialects(boliya) of Rajasthan

राजस्थान कि क्षेत्रीय बोलियाँ

डॉ. ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों को पाँच मुख्य वर्गों में विभक्त किया है। मगर सामान्यतया राजस्थान की बोलियों को दो भागों में बाँटा जा सकता है

क. पश्चिमी राजस्थानी-मारवाड़ी, मेवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी।
ख. पूर्वी राजस्थानी-ढूंढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, अहीरवाटी (राठी)।

1. मारवाड़ी

पश्चिमी राजस्थान की प्रमुख बोली मारवाड़ी क्षेत्रफल की दृष्टी से राजस्थानी बोलियों में प्रथम स्थान रखती है। यह मुख्य रूप से जोधपुर, पाली, बीकानेर, नागौर, सिरोही, जैसलमेर, आदि जिलों में बोली जाती है। मेवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी, नागौरी, खैराड़ी, गोड़वाड़ी आदि इसकी उपबोलियाँ हैं। विशुद्ध मारवाड़ी जोधपुर क्षेत्र में बोली जाती है। मारवाडी बोली के साहित्यिक रूप को 'डिंगल' कहा जाता है। मारवाडी बोली का साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। अधिकांश जैन साहित्य 'मारवाड़ी' बोली में ही लिखा गया है। राजिया के सोरठे, वेलि किसन रूकमणी री, ढोला-मरवण, मूमल आदि लोकप्रिय काव्य इसी बोली में हैं।

2. मेवाड़ी

मेवाड़ी बोली उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व राजसमन्द जिलों के अधिकांश भाग में बोली जाती है। मेवाड़ी बोली में साहित्य सर्जना कम हुई है। फिर भी इस बोली की अपनी साहित्यिक परम्परा है। कुम्भा की 'कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति' में मेवाडी बोली का प्रयोग किया गया है। मोतीलाल मेनारिया ने मेवाड़ी को मारवाड़ी की ही उपबोली माना है। मेवाड़ी तथा मारवाडी बोली की भाषागत विशेषताओं में साम्य है। इसी कारण मारवाडी साहित्य में मेवाड़ी का भी योगदान है। मेवाड़ी में 'ए' और 'ओ' को ध्वनि का विशेष प्रयोग होता है। मारवाड़ के बाद यह राजस्थान की दूसरी महत्त्वपूर्ण बोली है।

3. बागड़ी

डूंगरपुर और बाँसवाडा का सम्मिलित क्षेत्र 'बागड़' कहलाता है इस क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली 'बागडी' कहलाती है। बागड़ प्रदेश गुजरात के निकट है, इस कारण इस बोली पर गुजराती प्रभाव भी परिलक्षित होता है। यह बोली मेवाड़ के दक्षिणी भाग, अरावली प्रदेश एवं मालवा तक बोली जाती है। ग्रियर्सन ने इसे 'भीली' बोली कहा है। इसमें 'च' और 'छ' का उच्चारण 'स' किया जाता है तथा भूतकालिक सहायक क्रिया 'था' के स्थान पर 'हतो' का प्रयोग किया जाता है। इस बोली में प्रकाशित साहित्य का लगभग अभाव है।

4. ढूंढाड़ी

ढूँढाडी पूर्वी राजस्थान की प्रमुख बोली है जो किशनगढ़, जयपुर, टोंक, अजमेर, और मेरवाड़ा के पूर्वी भागों में बोली जाती है। यह बोली गुजराती एवं ब्रजभाषा से प्रभावित है। हाड़ौती, तोरावाटी, चौरासी, अजमेरी, किशनगढ़ी आदि इसकी प्रमुख उपबोलियाँ हैं। दादूपंथ का अधिकांश साहित्य इसी बोली में लिपिबद्ध है। ईसाई मिशनरियों ने बाईबिल का ढूँढाड़ी अनुवाद भी प्रकाशित किया था। साहित्य की दृष्टि से समृद्ध है। इस बोली में वर्तमान काल के लिए, 'छै' एवं भूतकाल के लिए 'छी', 'छौ' का प्रयोग होता है।

5. मेवाती

मेवाती बोली अलवर, भरतपुर, धौलपुर, और करौली के पूर्वी भाग में बोला जाती है। मेवाती बोली पर ब्रजभाषा का प्रभाव दष्टिगत होता है। साहित्य का दृष्टि से यह बोली समृद्ध है। संत लालदास, चरणदास, दयाबाई, सहजोबाई, डूंगरसिह आप की रचनाएँ मेवाती बोली में हैं।

6. मालवी

मालवी बाला झालावाड़, कोटा एवं प्रतापगढ के कछ क्षेत्रों में बोली जाती है। यह कोमल एवं मधुर बोली है। इसकी विशेषता सम्पर्ण क्षेत्र में इसकी एकरूपता है। काल रचना में हो, ही के स्थान पर थो, थी का प्रयोग होता है। इस बोला पर गुजराती एवं मराठी भाषा का भी न्यूनाधिक प्रभाव देखने को मिलता है।

7. हाडौती

कोटा, बून्दी, बारां और झालावाड़ क्षेत्र को हाड़ौती कहा जाता है। इस क्षेत्र में प्रचलित बोली हाड़ौती कहलाती है। इसे ढूंढाड़ी की उपबोली माना जाता है। इस बोली पर गुजराती व मारवाड़ी का प्रभाव भी है। बून्दी के प्रसिद्ध कवि सूर्यमल्ल मीसण की रचनाओं में हाड़ौती का प्रयोग मिलता है।

8. अहीरवाटी (राठी)

अहीरवाटी बोली अलवर जिले की बहरोड, मुण्डावर तथा किशनगढ़ के पश्चिमी भाग व जयपुर जिले की कोटपूतली तहसील में बोली जाती है। प्राचीन काल में आभीर जाति की एक पट्टी इस क्षेत्र में आबाद हो जाने से यह क्षेत्र अहीरवाटी या हीरवाल कहा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस बोली क्षेत्र को राठ एवं यहाँ की बोली को राठी भी कहा जाता है। यह देवनागरी, गुरुमुखी तथा फारसी लिपि में भी लिखी मिलती है। कवि जोधराज का हम्मीर रासो' और शंकरराव का 'भीमविलास' इसी बोली में हैं।

9. रांगड़ी

यह बोली मुख्यतः राजपूतों में प्रचलित है, जिसमें मारवाड़ी एवं मालवी का मिश्रण पाया जाता है। यह बोली कर्कशता लिए होती है।



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