राजस्थान के भूमिज शैली के मंदिर
▶ इस शैली की विशेषता मुख्यतः उसके शिखर में परिलक्षित है। इस शिखर के चारों और प्रमुख दिशाओं में तो लतिन या एकान्डक शिखर की भाँति, ऊपर से नीचे तक चैत्यमुख डिजायन वाले जाल की लतायें या पट्टियाँ रहती हैं लेकिन इसके बीच में चारों कोणों में, नीचे से ऊपर तक क्रमशः घटते आकार वाले छोटे-छोटे शिखरों की लड़ियाँ भरी रहती हैं।
▶ राजस्थान में भूमिज शैली का सबसे पुराना मंदिर पाली जिले में सेवाड़ी का जैन मंदिर (लगभग 1010-20 ई.) है।
▶ इसके बाद मैनाल का महानालेश्वर मंदिर ( 1075 ई.) है, जो पंचरथ व पंचभूम है। यह मंदिर पूर्णतः अखंडित है व अपने श्रेष्ठ अनुपातों के लिए दर्शनीय है।
▶ रामगढ़ (बारां) का भण्ड देवरा व बिजौलिया का उंडेश्वर मंदिर (लगभग 1125 ई.) दोनों गोल व सप्तरथ हैं। रामगढ़ मंदिर सप्तभूम है जबकि उंडेश्वर नवभूम है। रामगढ़ मंदिर अपनी पीठ की सजावट, मण्डप व स्तम्भों की भव्यता व मूर्तिशिल्य के लिए दर्शनीय है।
▶ झालरापाटन का सूर्य मंदिर सप्तरथ व सप्तभूम है लेकिन उसकी लताओं में अनेकाण्डक शिखरों की भांति उरहश्रृंग जोड़ दिये गए हैं।
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सूर्य मंदिर झालरापाटन |
▶ रणकपुर का सूर्य मंदिर व चित्तौड़ का अद्भुत नाथ मंदिर भी भूमिज शैली के हैं।
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