रविवार, 3 मई 2015

Lok Devata kalla ji rathod-लोक देवता कल्ला जी राठौड़


लोक देवता कल्ला जी राठौड़ का जन्म विक्रम संवत 1601 में दुर्गाष्टमी को नागौर जिले के मेड़ता शहर में हुआ था। वे मेड़ता रियासत के राव जयमल राठौड़ के छोटे भाई आस सिंह के पुत्र थे। भक्त कवयित्री मीराबाई इनकी बुआ थी। इनका बाल्यकाल मेड़ता में ही व्यतीत हुआ लेकिन बाद में वे चित्तौड़ दुर्ग में आ गए। वे अपनी कुल देवी नागणेचीजी माता के भक्त थे। कल्ला जी प्रसिद्ध योगी संत भैरव नाथ के शिष्य थे। माता नागणेची की भक्ति के साथ साथ वे योगाभ्यास भी करते थे। कल्लाजी ने औषधि विज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की थी। ये चार हाथों वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध है। इनकी मूर्ति के चार हाथ होते हैं। इनकी वीरता की कथा बड़ी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सन 1568 में अकबर की सेना ने चितौड़ पर कब्जा करने के लिए किले को घेर लिया। लम्बे समय तक सेना जब दुर्ग को घेरे रही तो किले के अंदर की सारी रसद समाप्त हो गई। तब सेनापति जयमल राठौड़ ने केसरिया बाना पहन कर शाका करने तथा क्षत्राणियों ने जौहर करने का निश्चय किया। फिर क्या था, किले का दरवाजा खोल कर चितौड़ की सेना मुगलों पर टूट पड़ी। युद्ध में सेनापति जयमल राठौड़ पैरों में घाव होने से घायल हो गए। उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी, किन्तु उनसे उठा नहीं जा रहा था। कल्ला जी से उनकी ये हालत देखी नहीं गई। उन्होंने जयमल को अपने कंधों पर बैठा कर दोनों हाथों में तलवार दे दी एवं स्वयं भी दोनों हाथों में तलवार लेकर युद्ध करने लगे। इस प्रकार वे दोनों चाचा भतीजे दुश्मन सेना पर टूट पड़े और दुश्मनों की लाशों का ढेर लगाने लगे। हाथी पर चढ़े हुए अकबर ने यह नजारा देख तो वह चकरा गया। उसने भारत के देवी देवताओं के चमत्कारों के बारे में सुन रखा था। इस दृश्य से वह अचंभित हो गया। उसने सोचा कि ये भी दो सिर और चार हाथों वाला कोई देवता है। काफी देर वीरता पूर्वक युद्ध करने पर कल्लाजी व जयमल जी काफी थक गए। मौक़ा देख कर कल्ला जी ने चाचाजी को नीचे जमीन पर उतारा एवं इलाज करने लग गए। तभी एक सैनिक ने पीछे से वार कर उनका सिर काट दिया। फिर भी वे बहुत देर तक मस्तक विहीन धड़ से ही मुगलों से लड़ते रहे।
उनकी इस वीरता एवं पराक्रम के कारण वे राजस्थान के लोकजगत में चार हाथ वाले लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। पूरे मेवाड़, पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा उत्तरी गुजरात के गाँवों में उनके चार हाथ वाली मूर्तियों के मंदिर बने हुए हैं। चितौड़ में जिस स्थान पर उनका बलिदान हुआ वहाँ भैरो पोल पर एक छतरी बनी हुई है। वहाँ प्रतिवर्ष आश्विन शुक्ला नवमी को एक विशाल मेले का आयोजन होता है। कल्ला जी को शेषनाग या नाग देवता के अवतार के रूपमें पूजा जाता है।

Share:

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपना कमेंट एवं आवश्यक सुझाव यहाँ देवें।धन्यवाद

SEARCH MORE HERE

Labels

राजस्थान ज्ञान भंडार (Rajasthan General Knowledge Store)

PLEASE ENTER YOUR EMAIL FOR LATEST UPDATES

इस ब्लॉग की नई पोस्टें अपने ईमेल में प्राप्त करने हेतु अपना ईमेल पता नीचे भरें:

पता भरने के बाद आपके ईमेल मे प्राप्त लिंक से इसे वेरिफाई अवश्य करे।

ब्लॉग आर्काइव