• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

बुधवार, 4 नवंबर 2020

राजस्थान का भील जनजाति आन्दोलन ( Bhil tribe movement of Rajasthan)

राजस्थान का भील जनजाति आन्दोलन

▶ राष्ट्रीय विचारधारा से प्रभावित कुछ ऐसे जन-सेवक पैदा हुए, जिन्होंने इन जातियों में जागृति का शंख फूंका और इन्हें अपने अधिकारों का भान कराया। ऐसे जन-सेवकों में प्रमुख थे स्वनामधन्य 'गुरुगोविन्द'

 ▶ श्री गोविन्द का जन्म सन् 1858 में डूंगरपुर राज्य के बांसिया ग्राम में एक बनजारे के घर में हुआ था। उन्होंने एक गाँव के पुजारी की सहायता से अक्षरज्ञान प्राप्त किया।

▶ वे स्वामी दयानन्द सरस्वती की प्रेरणा से युवावस्था में ही जन-जातियों की सेवा में जुट गये। उन्होंने आदिवासियों की सेवा हेतु सन् 1883 में सम्प सभा की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने मेवाड़, डूंगरपुर, ईडर, गुजरात, विजयनगर और मालवा के भील और गरासियों को संगठित किया। उन्होंने एक ओर उक्त जातियों में व्याप्त सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न किया तो दूसरी ओर उनको अपने मूलभूत अधिकारों का अहसास कराया। वे शीघ्र ही इन जातियों में लोकप्रिय हो गये। लोग उन्हें श्रद्धा से गुरु गोविन्द के नाम से सम्बोधित करने लगे।

▶ गरु गोविन्द ने सम्प सभा का प्रथम अधिवेशन सन् 1903 में गुजरात में लिया की पहाड़ी पर किया। इस अधिवेशन में गुरु गोविन्द के प्रवचनों से प्रभावित होकर भील-गरासियों ने शराब छोड़ने, बच्चों को पढ़ाने और आपस के झगडे अपनी जा ही निपटाने की शपथ ली। गुरु गोविन्द ने उन्हें बैठ-बेगार और गैरवाजिब लागने के लिये आह्वान किया। इस प्रकार हर वर्ष आश्विन शुक्ला पूर्णिमा को मानागढ की पसार पर सम्प सभा का अधिवेशन होने लगा। भील गारसियों में दिन-प्रति-दिन बढती हुई जा से आस-पास की रियासतों के शासक सहम उठे। उन्हें भय हो गया कि ये जनजाति सुसंगठित होकर भील राज्य की स्थापना करेगी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से प्रार्थना की कि भीलों के इस संगठन को सख्ती से दबा दिया जाये।

▶हर वर्ष की भाँति सन 1908 की आश्विन शुक्ला पूर्णिमा को मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प-सभा का विराट् अधिवेशन हुआ, जिसमें भारी संख्या में भील स्त्री-पुरुष शामिल हुए। मानगढ़ की पहाड़ी चारों ओर से ब्रिटिश सेना द्वारा घेर ली गयी। उसने भीड़ पर गोलियों की बौछार कर दी। फलस्वरूप 1500 आदिवासी घटनास्थल पर ही शहीद हो गये और हजारों घायल हो गए। गुरु गोविन्द और उनकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया। गुरु गोविन्द को अदालत द्वारा फाँसी की सजा दी गयी। मगर भीलों में प्रतिक्रिया होने के डर से सरकार ने उनकी यह सजा 20 वर्ष के कारावास में बदल दी, पर वे 10 वर्ष बाद ही रिहा कर दिये गये। गुरु गोविन्द ने अपना शेष जीवन गुजरात के कम्बोई नामक स्थान पर बिताया। 75 से अधिक वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी भील लोग गुरुगोविन्द की याद में मानागढ़ की पहाड़ी पर हर वर्ष आश्विन शुक्ला पूर्णिमा को एकत्र होकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
▶ राजस्थान के आदिवासियों में गुरु गोविन्द के बाद जिनको सबसे अधिक स्मरण किया जाता है, वे हैं, स्व. श्री मोतीलाल तेजावत।

▶ सन् 1886 में मेवाड़ के आदिवासी क्षेत्र फलासिया के कोलियारी ग्राम में एक ओसवाल परिवार में उत्पन्न श्री तेजावत उस जमाने के मुताबिक थोड़ा बहुत पढ़-लिखकर झाड़ोल ठिकाने के कामदार बन गये। परन्तु थोड़े ही समय में ठिकाने और सरकार द्वारा आदिवासियों पर ढाये जाने वाले जुल्मों से उद्वेलित होकर उन्होंने ठिकाने की नौकरी को तिलांजलि दे दी। वे अब आदिवासियों की सेवा में तल्लीन हो गये।

▶ उन्होंने सन् 1921 झाडोल, कोटड़ा, मादड़ी आदि क्षेत्रों के भीलों को जागीरदारों द्वारा ली जाने वाली बैठ-बेगार और लाग-बागों के प्रश्न को लेकर संगठित किया। धीरे-धीरे यह आन्दोलन सिरोही, दांता, पालनपूर, ईडर, विजयनगर आदि राज्यों में फैल गया।

▶ श्री तेजावत ने बैठ-बेगार और लाल-बाग समाप्त करने सम्बन्धी मांगों को लेकर आस-पास की रियासतों के भीलों का एक विशाल सम्मेलन विजयनगर राज्य के नीमड़ा गाँव में आयोजित किया। मेवाड और अन्य पडोसी राज्यों की सरकारें भीलों में बढ़ती हुई जागति से भयभीत हो गयीं। अत: उक्त राज्यों की सेनायें भीलों के आन्दोलन को दबान के लिये नीमड़ा पहुँच गयीं। वहाँ पर विभिन्न राज्यों के अधिकारियों ने एक ओर भील प्रतिनिधियों को समझौता वार्ता में उलझाया और दूसरी ओर सेना ने सम्मेलन को घेर कर गोलियां चलाना आरम्भ कर दिया। इस नर-संहार में 1200 भील मारे गये और हजारों घायल हो गये |

▶ भील नेता तेजावतजी स्वयं पैर में गोली लगने से घायल हो गये। लोग उन्हें उठाकर सुरक्षत स्थान पर ले गये। मेवाड. सिरोही आदि राज्यों की पलिस ने उनकी गिरफ्तारी के लिये अनेक प्रयत्न किये पर उन्हें सफलता नहीं मिली। अन्त में 8 वर्ष बाद सन् 1929 में महात्मा गाँधी की सलाह पर तेजावतजी ने अपने आपको ईडर पलिस, के सपर्द कर दिया। वहाँ से उन्हें मेवाड लाया गया, जहाँ वे 7 वर्ष तक सेन्ट्रल जेल, उदयपुर में कैद रहे। उन्हें सन् 1936 में जेल से तो रिहा कर दिया गया, पर उदयपुर में नजरबन्द कर दिया गया।

▶सन् 1942 में उन्हें 'भारत छोडो' आन्दोलन के दौरान पुनः जेल में बन्द कर दिया गया। सन् 1945 में उन्हें जेल से रिहा किया गया, पर फिर उनके उदयपुर से बाहर जाने पर पाबन्दी लगा दी गयी जो देश के आजाद होने तक चालू रही। उन्होंने अपना शेष जीवन सामाजिक सेवाओं में गुजारा। उनका देहान्त 5 दिसम्बर, सन् 1963 को हुआ।

▶भील-गरासियों के लिये देश की आजादी के पूर्व अन्य जिन जन-सेवकों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया, उनमें प्रमुख थे- सर्वश्री माणिक्यलाल वर्मा, भोगीलाल पांड्या, मामा बालेश्वर दयाल, बलवन्तसिंह मेहता, हरिदेव जोशी एवं गौरीशंकर उपाध्याय। उन्होंने भील क्षेत्रों में जगह-जगह शिक्षण संस्थायें, प्रौढ़ शालायें और होस्टल आदि स्थापित कर भील और गरासियों में नये जीवन का संचार किया


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सोमवार, 2 नवंबर 2020

भारत के भू-आकृतिक प्रदेश( Geophysical regions of India)

भारत के भू-आकृतिक प्रदेश ( Geophysical regions of India)

1.उत्तरी पर्वतीय प्रदेश

उच्च धरातल, हिमाच्छादित चोटियां गहरा व कटा-फटा धरातल, पूर्वगामी जलप्रवाह,जटिल भूगर्भीय संरचना और उपोष्ण अक्षांशों में मिलने वाली शीतोष्ण सघन वनस्पति आदि विशेषताए भारत के इस पर्वतीय भाग को अन्य धरातलीय भू-भागों से अलग करती है। पूर्व से पश्चिम कि में इसकी लम्बाई 2400 किमी. एवं देशांतरीय फैलाव 22° देशांतर तक है और इसकी चौडाई 160 से 500 किमी. के बीच पाई जाती है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। यह नवीन वलन पर्वत है। इनको बनाने में दबाव की शक्तियों अथवा समानान्तर भू-गतिया का अधिक योगदान है।

2. विशाल उत्तरी मैदानी प्रदेश


 यह मैदान प्रायद्वीपीय भारत को बाह्य-प्रायद्वीपीय भारत से अलग करता है। यह नवीनतम भखण्ड है, जो हिमालय की उत्पत्ति के बाद बना है। यह सिन्धू गंगा ब्रहमपुत्र का प्रमुख भाग है, जो कि भौगोलिक दृष्टि से एक खण्ड है, जिसे भारत, पाकिस्तान बंगलादेश के राजनीतिक विभाजन ने अलग कर दिया है। इस मैदान की लम्बाई पूर्व-पश्चिम दिशा में 2400 किमी है, लेकिन चौड़ाई में भिन्नता पाई जाती है, जो क्रमशः पश्चिम से पूर्व की ओर कम होती जाती पश्चिम में इसकी चौड़ाई 500 किमी. है तथा पूर्व में इसकी चौड़ाई घटकर 145 किमी. रह जाती थी। इसकी औसत समुद्र तल से ऊंचाई 150 मीटर है। अपनी उच्च उर्वरता के लिए यह मैदान विश्व प्रसिद्ध है और प्राचीनकाल से ही सभ्यता एवं संस्कृति का पालना रहा है।

3. प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश

भारत का प्रायद्वीपीय पठारी भाग त्रिभुजाकार है। यह क्षेत्र सभी तरफ से पहाड़ियों से घिरा है। इसके उत्तर में अरावली, विन्ध्य, सतपुड़ा, भारनेर और राजमहल पहाड़ियां हैं। पश्चिम में सह्याद्रि तथा पूर्व में पूर्वी घाट स्थित है। सम्पूर्ण पठारी भाग की लम्बाई उत्तर से दक्षिण में 1600 किमी. तथा पूर्व-पश्चिम में 1400 किमी. है। यह कुल 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में स्थित है। यह पठार भारत का प्राचीनतम् भू-खण्ड है, जिसकी औसत ऊंचाई 600-900 मीटर तक है। इस क्षेत्र का सामान्य ढलान पश्चिम से पूर्व की ओर है। अपवाद के तौर पर नर्मदा-ताप्ती के भ्रंश भाग में ढलान पूर्व से पश्चिम की ओर है। विभिन्न पर्वतों की उपस्थिति के फलस्वरूप यह पठार कई छोटे-छोटे पठारा में विभाजित हो गया है।

4.तटीय मैदानी प्रदेश

भारत की तट रेखा पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में गंगा-ब्रह्मपुत्र तक फैली है ये तट व तटीय मैदान संरचना व धरातल की दष्टि से स्पष्ट विभिन्नताएं रखते हैं ये पश्चिमा भाग में पश्चिमी तटीय मैदान तथा पर्वी भाग में पर्वी तटीय मैदान के नाम से जाने जाते हैं 

भूआकृतिक तौर पर भारतीय तटीय मैदानों को निम्न तीन विस्तृत विभागों में बाँटा जा सकता है- (1) गुजरात तटीय मैदान (ii) पश्चिमी तटीय मैदान (iii) पुर्वी तटीय मैदान।

गुजरात तटीय मैदान का विस्तार गुजरात, दमन व दीप, दादरा एवं नगर हवेली में है।

पश्चिमी तटीय मैदान को तीन उपखंडो में बाँटा जा सकता है- (i) कोंकण मैदान (ii) कर्नाटक या कनारा तटीय मैदान (iii) केरल या मालाबार तटीय मैदान।

पूर्वी तटीय मैदान इसे भी तीन उपखण्डों में बाँटा जा सकता है- (1) तमिलनाडु मैदान (2) आंध्र प्रदेश एवं (3) उत्कल मैदान। इन सभी तटीय मैदान का विकास अलग अलग क्रियाओ के सम्मिलित प्रभावस्वरूप हआ है इन क्रियाओं में समद्री तरंग के द्वारा अपरदन तट का उन्मज्जन , निमज्जन, नदियों द्वारा लाए गए निक्षेप तथा वाय के निक्षेपणात्मक क्रिया आदि शामिल है |

5. द्वीप प्रदेश


भारत में कुल 100 से अधिक द्वीप है जो बंगाल की खाडी और अरब सागर में स्थित है जहाँ बंगाल की खाड़ी के द्वीप म्यांमार की अराकानयोमा की विस्तरित निमज्जित श्रेणी के शिखर हे वहीं अरब सागर के द्वीप प्रवाल भित्तियों के जमाव हैं। इसके अतिरिक्त गंगा के मुहाने ,मन्नार की खाडी एवं पर्वी और पश्चिमी तटों के सहारे डेल्टा जमावों से निर्मित कई अपतटीय द्वीप स्थित है। ब्रह्मपुत्र में स्थित मजुली एशिया का बहत्तम् ताजा जल वाला द्वीप है

भारतीय द्वीपों को उनके अपस्थिति के आधार पर तीन भागों में बाँट सकते हैं। (i) अरब सागर के द्वीप (ii)बंगाल कि खाड़ी के द्वीप (iii) अपतटीय द्वीप।अरब सागर स्थित लक्षद्वीप समूह के 43 द्वीप सम्मिलित हैं। बंगाल की खाडी में अंडमान निकोबार समूह में कुल 204 द्वीप हैं।

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धौलपुर प्रजामण्डल आन्दोलन (DHOULAPUR PRAJAMANDAL AANDOLAN)

धौलपुर प्रजामण्डल आन्दोलन 

▶ 1970 ई. में ज्वाला प्रसाद और यमुना प्रसाद ने धौलपुर में आचार सुधारिणी सभा' और 1911 ई. में आर्य समाज' के माध्यम से जन चेतना जागृत करने के प्रयास किये। 

▶ 1918 ई. में स्वामी श्रद्धानंद के नेतृत्व में आर्य समाज ने स्वशासन आदोलन चलाया फलतः आर्य समाज के कई कार्यकर्ताओं को जेल जाना पड़ा। 

▶ 1934 ई. में ज्वाला प्रसाद और जौहरीलाल ने धौलपुर में 'नागरों प्रचारिणी सभा की स्थापना की। सभा के तत्वावधान में पुस्तकालय और वाचनालय खोलकर जनता में राजनीतिक चेतना का प्रयास किया गया। 

▶ 1936 ई. में ज्वालाप्रसाद ने धौलपुर में हरिजनोद्धार आंदोलन चलाया। फलतः सरकार को हरिजन बालकों को सार्वजनिक स्कूलों में पढ़ने की इजाजत देनी पड़ी।

▶ 1936 ई. में कृष्णदत्त पालीवाल, मूलचंद, ज्वाला प्रसाद एवं जवाहरलाल ने 'धौलपुर प्रजामण्डल' की स्थापना की। प्रजामण्डल ने कृष्णदत्त पालीवाल के नेतृत्व में राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापना की माँग की। 

▶14 जुलाई, 1938 को प्रजामण्डल ने राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने, प्रजामण्डल को मान्यता देने तथा इसकी शाखाएं खोलने की अनुमति देने, राजनीतिक बंदियों को जेल से मुक्त करने, आम सभा एवं हड़तालों की स्वीकृति देने को भाँग की। लेकिन सरकार ने प्रजामण्डल की इन मांगों को स्वीकार नहीं किया।

▶ अप्रैल, 1940 में भदई गाँव में पूर्वी राजपूताना के राज्यों के राजनीतिक कार्यकर्ताओं का सम्मेलन हुआ, जिसमें सभी राज्यों में उत्तरदायी शासन स्थापित करने के प्रस्ताव पारित किए गए। लेकिन धौलपुर सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।

▶ 1947 ई. में राज्य सरकार ने सभाओं और जुलूसों पर रोक लगा दी । धौलपुर प्रजामण्डल ने राज्य के इन आदेशों की अवहेलना की। भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान धौलपुर में प्रजामण्डल ने आंदोलन चलाया और उत्तरदायी शासन स्थापना को माँग की।

▶ 12 नवम्बर, 1946, को तासीमों गाँव में प्रजामण्डल के अधिवेशन में पुलिस ने कार्यकर्ताओं पर अमानवीय अत्याचार किये। तासोमों गाँव के लोगों ने प्रजामण्डल की सहायता की थी, अत: गाँव वालों पर गोलियाँ चलाई गई, जिससे किसान ठाकुर छतरसिंह और पंचमसिंह मारे गए राज्य की  दमनात्मक कार्यवाही की सारे देश में आलोचना हुई। 

▶ 17-18 नवम्बर, 1947 को प्रजामण्डल ने राम मनोहर लोहिया की अध्यक्षता में धौलपुर में एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किया। सम्मेलन में उत्तरदायी शासन की स्थापना, भष्टाचार और कालाबाजारी पर रोक लगाने के प्रस्ताव पारित किए गए। जनमत के दबाव के आगे महाराजा उदयभान सिंह को झुकना पड़ा। शासक ने उत्तरदायी शासन स्थापित करने एवं 'तासीमों काण्ड' की जाँच का आश्वासन दिया।

▶ 18 मार्च, 1948 को धौलपुर 'मत्स्य संघ' का हिस्सा बन गया ।


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सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

रणथंभौर का किला (RANTHAMBHOUR FORT)

रणथंभौर का किला (RANTHAMBHOUR FORT)

▶ 'गिरी दुर्ग' रणथंभौर हमीर की आन बान शान के लिए प्रसिद्ध है। सवाई माधोपुर से 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ रणथंभौर का किला विषम आकृति वाली ऊंची नीची  सात पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित है जिनके बीच में गहरी खाईया और नाले हैं ।
▶ यह किला यद्यपि एक ऊंचे पर्वत शिखर पर स्थित है मगर समीप जाने पर ही दिखाई देता है। रणथंभौर दुर्ग के निर्माण और निर्माताओं के संबंध में प्रमाणिक जानकारी अभी तक नहीं मिल सकी है ।इतिहासकारों का मानना है कि इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों द्वारा करवाया गया ।
▶ किला समुद्र तल से 481 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा 12 किलोमीटर की परिधि में विस्तृत है। उसके तीन तरफ गहरी खाई है ,खाईया के साथ परकोटा फिर ढलवा जमीन और दुर्गम वन है । 
▶इसकी प्राचीर पहाड़ियों के साथ एकाकार से लगती है दुर्गम भौगोलिक  स्थिति के कारण ही अबुल फजल ने लिखा है 'और दुर्गे नंगे है परंतु यह बख्तरबंद है'। 
▶ रणथंभौर का वास्तविक नाम रन्त:पुर है अर्थात रण की घाटी में स्थित नगर ।रण  उस पहाड़ी का नाम है जो किले की पहाड़ी से कुछ नीचे है एवं थंभ उसका जिस पर यह किला बना है इसी से इसका का नाम रणस्तंभपुर हो गया जो कालांतर में रणथंभौर के नाम से जाना जाता है।
▶ तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान तृतीय का पुत्र गोविंदराज सामंत शासक के रूप में रणथंभौर की गद्दी पर बैठा । तत्पश्चात ऐबक, इल्तुतमिश ,बलबन इस किले पर अधिकार रखने में सफल रहे। 1282 -1301 ईस्वी में हम्मीर देव चौहान यहाँ का शासक था उस समय जलालुद्दीन खिलजी ने 1292 ई. में रणथभौर पर आक्रमण किया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली तब खिसियाकर उसने कहा "ऐसे 100 किलो को भी वह मुसलमान के एक बाल के बराबर भी नहीं मानता है" 
▶ 1301 ई. में हमीर के मंत्रियों के विश्वासघात के कारण अलाउद्दीन खिलजी किले पर अधिकार करने में सफल रहा। इस समय हम्मीर की पत्नी रंग देवी और पुत्री देवल दे के नेतृत्व में किले में जोहर हुआ जो रणथंबोर का पहला शाखा कहलाता है।
▶ राणा कुंभा, राणा सांगा का भी इस किले पर आधिपत्य रहा ।1534 ईसवी में मेवाड़ ने इसे गुजरात के शासक बहादुरशाह को सौंप दिया ।1542 ई. में यह शेरशाह सूरी एवं उसके बाद सुर्जन हाडा के अधिकार में रहा। 1569 ईसवी में रणथंबोर पर मुगल आधिपत्य स्थापित हो गया ।अकबर ने यहां शाही टकसाल स्थापित की। मुगल काल में शाही कारागार के रूप में भी इसका उपयोग किया गया ।मुगलों के पराभव काल में जयपुर महाराजा माधो सिंह ने किले पर अधिकार कर लिया। 1947 तक यह जयपुर के आधिपत्य में ही रहा ।

▶ नौलखा दरवाजा, हाथीपोल, गणेशपोल, सूरजपोल और त्रिपोलिया पोल किले के प्रमुख प्रवेश द्वार है। किले की प्रमुख इमारतों में हम्मीर महल, रानीमहल, हम्मीर की कचहरी ,सुपारी महल ,बादल महल, 32 खंभों की छतरी ,जौरा भौरा,रानिहाड तालाब, पीर सदरुद्दीन की दरगाह, लक्ष्मी नारायण मंदिर है। किले के पार्श्व में पद्मला तालाब स्थित है ।भारत प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर इसी किले में स्थित है।
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रविवार, 18 अक्टूबर 2020

तारागढ़ का किला ,अजमेर (TARAGARH FORT AJMER)

तारागढ़ का किला ,अजमेर (TARAGARH FORT AJMER)

राजस्थान का जिब्राल्टर

TARAGARH AJMER
तारागढ़ का किला ,अजमेर

▶गढ़ बिठली , अजयमेरु और तारागढ़ के नाम से विख्यात किला अरावली पर्वतमाला के  शिखर पर निर्मित है । कर्नल टॉड के अनुसार अजमेर नगर के संस्थापक अजय राज(1105-33 ई.) ने इस किले का निर्माण करवाया । 

▶गोपीनाथ शर्मा का मानना है कि राणा सांगा के भाई कुंवर पृथ्वीराज में इस किले के कुछ भागों का निर्माण करवाया | और अपनी पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा । 

▶ गढ़ बिठली के बारे में कहा जाता है कि बिठली उस पहाड़ी का नाम है जिस पर दुर्ग बना हुआ है| गढ़ बिठली नाम के संबंध में एक अन्य मत यह है कि मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में विट्ठलदास गौड यहां का दुर्गाध्यक्ष जिसने इस दुर्ग का निर्माण करवाया और उसी के नाम पर इस किले का नाम गढ़ बिठली पड़ा| 

▶ यह किला समुद्र तल से 2855 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है और 80 एकड़ परिधि में फैला हुआ है| पर्वत शिखरों के साथ मिली हुई ऊंची प्राचीर, सुदृढ़, और विशालकाय बुर्ज तथा सघन वन इसे सुरक्षा प्रदान करते हैं। हरीविलास शारदा ने इसे भारत का प्राचीनतम गिरी दुर्ग माना है| हरविलास शारदा के  अनुसार राजस्थान के समस्त किलो में सर्वाधिक आक्रमण तारागढ़ पर हुए हैं|

● राजस्थान के किले

▶ राजपूताना के मध्य में स्थित होने के कारण इस दुर्ग का विशेष सामरिक महत्व रहा है इसीलिए महमूद गजनवी से लेकर अंग्रेजों के नियंत्रण में आने तक इसे अनेक आक्रमणों का सामना करना पड़ा | 

▶ राव मालदेव ने तारागढ़ का जीर्णोधार करवाया तथा किले में पानी पहुंचाने के लिए एक रहट का निर्माण भी करवाया| मालदेव कि पत्नी रूठी रानी(उमादे) ने  तारागढ़ को अपना निवास बनाया था| गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक में 1832 ईस्वी में संभावित उपद्रव की आशंका से इस किले की प्राचीर और अन्य भाग तुड़वाकर इस  किले का सामरिक महत्व समाप्त कर दिया था|

▶ तारागढ़ की प्राचीर में 14 विशाल  बुर्जे - घुंघट ,गुगडी, फूटी, नक्कारची, श्रृंगार-चंवरी,आर-पार का अत्ता ,जानु-नायक,पिपली ,इब्राहीम शहीद,दोराइ,बांदरा, इमली, खिड़की और फ़तेह बुर्ज है| नाना साहब का झालरा ,गोल झालरा , इब्राहीम का झालरा  आदि किले के भीतर जलाश्यो  के नाम है | तारागढ़ में मुस्लिम संत मीरा साहिब की दरगाह स्थित है| 

▶बिशप हेबर ने इस किले के बारे में लिखा है " यदि यूरोपीय तकनीक से इसका जीर्णोद्धार करवाया जाए तो यह दूसरा जिब्राल्टर बन सकता है| इसे राजस्थान का जिब्राल्टर भी कहा जाता है|

RAJASTHAN GK TOPIC WISE

● राजस्थान परिचय 

● राजस्थान का इतिहास

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● राजस्थान का पशुधन

● राजस्थान के लोक वाद्य यंत्र

● राजस्थान के मंदिर/तीर्थ स्थल

● राजस्थान की योजनाएं

● राजस्थान के किले

● राजस्थान के मेले तीज त्योहार

● राजस्थान के लोक देवी देवता










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मंगलवार, 1 सितंबर 2020

भटनेर का किला हनुमानगढ़ (BHATNER FORT HANUMANGARH RAJASTHAN)

भटनेर का किला हनुमानगढ़ (BHATNER FORT HANUMANGARH RAJASTHAN)

उत्तरी सीमा का प्रहरी

▶ घग्गर नदी के मुहाने पर हनुमानगढ़ में अवस्थित भटनेर का किला मरुस्थल से  घिरा होने के कार धान्वन दुर्ग  की श्रेणी में रखा जाता है दिल्ली मुल्तान मार्ग पर स्थित होने के कारण इसका सामरिक महत्व था |

▶ जनश्रुति के अनुसार इस किले का निर्माण भाटी राजा भूपत ने तीसरी शताब्दी में   करवाया था| यह किला 52 बीघा भूमि में विस्तृत है |इसमें 52 विशाल  बुर्जे हैं |किले का निर्माण पकि हुई ईटो और चुने से हुआ है | 

▶ बीकानेर के महाराजा सूरत सिंह द्वारा 1805 ईस्वी में मंगलवार के दिन इस किले पर अधिकार किए जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़  रख दिया गया|और किले में हनुमान जी का एक मंदिर का निर्माण करवाया |

▶ महमूद गजनवी ने 1001 ईस्वी में भटनेर पर अधिकार कर लिया था |बलबन के शासनकाल में शेर खान यहां का हाकिम  था जिसने यहीं से मंगोल आक्रमणकारियों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया शेरखान कि कब्र आज भी किले के भीतर विद्यमान है| 

▶ 1398 ईसवी में तैमूर ने भटनेर पर आक्रमण कर लूटमार मचाइ| 1527ई में पहली बार राव जैतसी ने किले पर राठौर आधिपत्य स्थापित किया | हुमायूं के भाई कामरान के आक्रमण के समय राव खेतसी ने  दुर्ग की रक्षा बड़े वीरता से की और वीर गति को प्राप्त हुए |

▶ 1549ई में भटनेर पर राठौड ठाकुरसी ने अधिकार कर लिया| 1570 ईस्वी में अकबर ने भटनेर पर अधिकार कर लिया | लेकिन ठाकुरसी  के पुत्र बाघा की सेवा से प्रसन्न होकर भटनेर  उसको सौंप दिया तत्पश्चात यह किला बीकानेर के शासकों के अधिकार में रहा |भटनेर को लेकर भाटियो  और जोहीयो  के मध्य संघर्ष चला और किले के स्वामित्व में परिवर्तन होता रहा |अंततः 1805 ईस्वी मैं यहां बीकानेर के आधिपत्य में चला गया |

▶ भटनेर को उत्तरी सीमा का प्रहरी भी कहा जाता है

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सोमवार, 10 अगस्त 2020

भारत का स्थिति एवं विस्तार (Status and Expansion OF India)

भारत का स्थिति एवं  विस्तार (Status and Expansion OF India)

भारत का स्थिति एवं  विस्तार

▶ भारत पूर्णता उत्तरी गोलार्ध में दक्षिण एशिया के मध्य स्थित है भौगोलिक दृष्टि से भारत भूमध्य रेखा के उत्तर में 8 डिग्री 4 मिनट से 37 डिग्री 6 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 68 डिग्री 7 मिनट से 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है| 

▶ भारत भूमि से दूर बंगाल की खाड़ी में स्थित केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार दीप समूह 6 डिग्री 4 मिनट उत्तरी अक्षांश से 14 डिग्री उत्तरी अक्षांश एवं 92 डिग्री पूर्वी देशांतर से 94 डिग्री पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है|

▶ भारत का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट(ग्रेट निकोबार द्वीप में) तथा भारतीय मुख्य भूमि के  दक्षिणी छोर में लगभग 2 डिग्री अक्षांश का अंतर है| इसी प्रकार अरब सागर में स्थित लक्ष्यदीप समूह 8 डिग्री उत्तरी अक्षांश से 12 डिग्री 3 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 71 डिग्री से 73 डिग्री पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है| 

▶कर्क रेखा देश के मध्य से होकर गुजरती है| 82 डिग्री 30 मिनट पूर्वी देशांतर मध्य भारत में इलाहाबाद के निकट से होकर गुजरती है| जिसको देश के प्रामाणिक समय का आधार माना गया है| भारत का प्रामाणिक समय ग्रीनविच माध्य समय से 5 घंटा 30 मिनट आगे हैं|

▶ दक्षिण एशिया में भारत की विशिष्ट प्रायद्वीपीय स्थिति सामरिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है| प्रायद्वीप के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिंद महासागर स्थित है। व्यापारिक मार्गों पर स्थित होने के कारण अंतरराष्ट्रीय संपर्क की उत्तम सुविधा प्राप्त है । 

▶ हिंद महासागर के अनेक विश्व की महा शक्तियों के नियंत्रण की स्पर्धा के कारण हिंद महासागर का सामरिक महत्व रहा है | वायु मार्ग की दृष्टि से भारत की स्थिति विशेष महत्व की है| 

▶यहां पश्चिमी देशों से सुदूर पूर्व की ओर जाने वाले वायुयान ईंधन एवं यात्री लेते हैं तथा आपातकालीन मरम्मत भी कराई जाती है । ऐसी महत्वपूर्ण स्थिति के कारण प्राचीन काल से ही भारत का संपर्क तत्कालीन संपूर्ण सभ्य  विश्व से था । स्थिति के कारण आज भी भारत की स्थिति दक्षिण एशिया में सबसे महत्वपूर्ण है|

भारत का स्थिति एवं  विस्तार
भारत का स्थिति एवं  विस्तार

▶ भारत का क्षेत्रफल 32,87, 263 वर्ग किलोमीटर है । यह विश्व की कुल सतही क्षेत्रफल का 2.34% है । क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में सातवा(रूस , कनाडा , संयुक्त राज्य अमेरिका , ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के बाद) बड़ा देश है । यह रूस रहितयूरोप महाद्वीप के बराबर है| यह कनाडा का 1 /3 , रूस का 1 / 5 भाग है । इसकी विशालता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि यह पाकिस्तान से 4 गुना,जर्मनी से 9 गुना, नेपाल से 22 गुना और बांग्लादेश से 23 गुना बड़ा है|

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