• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

रविवार, 12 अप्रैल 2015

"POMCHA" - A Famous odhani of rajasthan (पोमचा - राजस्थान की एक प्रसिद्ध ओढ़नी)-Rajasthan Gk

"पोमचा" - राजस्थान की एक प्रसिद्ध ओढ़नी

◆ राजस्थान में स्त्रियों की ओढ़नियों मे तीन प्रकार की रंगाई होती है- पोमचा, लहरिया और चूंदड़।

◆ पोमचा पद्म या कमल से संबद्ध है, अर्थात इसमें कमल के फूल बने होते हैं। यह एक प्रकार की ओढ़नी है।

◆ वस्तुतः पोमचा का अर्थ कमल के फूलके अभिप्राय से युक्त ओढ़नी है। यह मुख्यतः दो प्रकार से बनता है- 1. लाल गुलाबी 2. लाल पीला। 


◆ इसकी जमीन पीली या गुलाबी हो सकती है।इन दोनो ही प्रकारों के पोमचो में चारो ओर का किनारा लाल होता है तथा इसमें लाल रंग से ही गोल फूल बने होते हैं। 

Pomcha
POMCHA पोमचा राजस्थान की एक ओढनी
◆ यह बच्चे के जन्म के अवसर पर पीहर पक्ष की ओर से बच्चे की मां को दिया जाता है।

सूर्य पूजन के समय बच्चे का नए वस्त्रों के साथ नवप्रसूता को मायके से भेजा गया  लिए विशेष परिधान  " पीला " पहनना आवश्यक होता है, जो उनके चेहरे की पीतवर्ण आभा को और अधिक सुवर्णमय बनाता है

◆ पीले अथवा नारंगी रंग की पृष्ठभूमि के साथ लाल बॉर्डर इस परिधान की विशेषता है। इस पर भी आरी तारी की कढ़ाई के साथ बेल बूटे होते हैं।जगमग बेल बूटों की  कढ़ाई के साथ लाल और पीले रंग में रंग पीला साडी या ओढ़नी पहनकर जच्चा जब गोद में बच्चे को लेकर पूजन करती है तो उसके चेहरे पर वात्सल्य की आभा और अभिमान की छटा देखते ही बनती है ! इसके बाद अन्य पूजन अथवा शुभ कार्यों में माएं चुन्दडी के स्थान पर पीले का प्रयोग भी करती हैं।

◆ पुत्र का जन्म होने पर पीला पोमचा तथा पुत्री के जन्म पर लाल पोमचा देने का रिवाज है। 

◆ पोमचा राजस्थान में लोकगीतों का भी विषय है।पुत्र के जन्म के अवसर पर "पीला पोमचा" का उल्लेख गीतों में आता है। एक गीत के बोल इस तरह है-
" भाभी पाणीड़े गई रे तलाव में, भाभी सुवा तो पंखो बादळ झुकरया जी।
     देवरभींजें तो भींजण दो ओदेवर और रंगावे म्हारी मायड़ली जी।।"

अर्थात देवरकहता है कि भाभी तुम पानी लेने जा रही हो परंतु घटाएं घिर रही है, तुम्हारा पीला भीग जाएगा, रंगचूने लगेगा। तब भाभी कहती है कि कोई बात नहीं देवर मेरी मां फिर से रंगवा देगी।

◆ एक अन्य गीत में नवप्रसूता अपने पति से पिला रंगवाने को कहती है-
पिळो रंगावो जी
पाँच मोहर को साहिबा पिळो रंगावो जी
हाथ बतीसी गज बीसी गाढा मारू जी
पिळो रंगावो जी

दिल्ली सहर से साईबा पोत मंगावो जी
जैपर का रंगरेज बुलावो गाढा मारू जी
पिळो रंगावो जी
◆ एक अन्य गीत में नवप्रसूता पत्नी अपने पति से पीला रंगवाने का अनुरोध करती है।
" बाईसा रा वीरा, पीलो धण नै केसरी रंगा दो जी।"


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सोमवार, 30 मार्च 2015

ऊँचा-ऊँचा धोरा अठै, लाम्बो रेगिस्तान।

ऊँचा-ऊँचा धोरा अठै, लाम्बो रेगिस्तान।
कोसां कोस रुंख कोनी, तपतो राजस्थान।।
फोगला अर कैर अठै, करै भौम पर राज।
गोडावणरा जोङा अठै, मरुधर रा ताज।।
कुंवा रो खारो पाणी, पीवै भैत मिनख।
मेह रो पालर पाणी, ब्होत जुगत सूं रख।।
कोरी कोरी टीबङी, उङै रेत असमान।
सणसणाट यूं बाज रही, जणुं सरगम रा गीत।।
सोनै ज्यूं चमके रेत, चाँदनी रातां में। रेत
री महिमा गावै, चारण आपरी बातां में।।
इटकण मिटकण दही चटोकण, खेलै बाल गोपाल अठै।
गुल्ली डंडा खेल प्यारा, कुरां कुरां और कठै।।
अरावली रा डोंगर ऊंचा, आबू शान मेवाङ री।
चम्बल घाटी तिस मिटावै, माही जान मारवाङ री।।
हवेलियाँ निरखो शेखावाटी री, जयपुर में हवामहल।
चित्तौङ रा दुर्ग निरखो, डीग रा निरखो जलमहल।।
संगमरमर बखान करै, भौम री सांची बात।
ऊजळै देश री ऊजळी माटी, परखी जांची बात।।
धोरा देखो थार रा, कोर निकळी धोरां री।
रेत चालै पाणी ज्यूं, पून चालै जोरां री।।
भूली चूकी मेह होवै, बाजरा ग्वार उपजावै।
मोठ मूँग पल्लै पङे तो, सगळा कांख बजावै।।
पुष्कर रो जग में नाम, मेहन्दीपुर भी नाम कमावै।
अजमेर आवै सगळा धर्मी, रुणेचा जातरु पैदल जावै।।
रोहिङै रा फूल भावै, रोहिङो खेतां री शान।
खेजङी सूँ याद आवै, अमृता बाई रो बलिदान।
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शनिवार, 1 नवंबर 2014

राजस्थान कीप्रमुख बोलिया

राजस्थान की प्रमुख बोलिया
भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में कई बोलियाँ बोली जाती हैं। वैसे तो समग्र राजस्थान में हिन्दी बोली का प्रचलन है लेकिन लोक-भाषएँ जन सामान्य पर ज्यादा प्रभाव डालती हैं। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों के पारस्परिक संयोग एवं सम्बन्धों के विषय में लिखा तथा वर्गीकरण किया है ग्रियर्सन का वर्गीकरण इस प्रकार है :-
१. पश्चिमी राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियाँ - मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी,
बीकानेरी, बाँगड़ी, शेखावटी, खेराड़ी, मोड़वाडी, देवड़ावाटी आदि।
२. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - अहीरवाटी और मेवाती।
३. मध्य-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - ढूँढाड़ी, तोरावाटी, जैपुरी, काटेड़ा, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़, नागर चोल, हड़ौती।
४. दक्षिण-पूर्वी राजस्थान - रांगड़ी और सोंधवाड़ी
५. दक्षिण राजस्थानी बोलियाँ - निमाड़ी आदि।
मोतीलाल मेनारिया के मतानुसार राजस्थान की निम्नलिखित बोलियाँ हैं :-
१. मारवाड़ी
२. मेवाड़ी
३. बाँगड़ी
४. ढूँढाड़ी
५. हाड़ौती
६. मेवाती
७. ब्रज
८. मालवी
९. रांगड़ी
बोलियाँ जहाँ बोली जाती हैं :-
१. मारवाड़ी - जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर व शेखावटी
२. मेवाड़ी - उदयपुर, भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़
३. बाँगड़ी - डूंगरपूर, बाँसवाड़ा, दक्षिण-पश्चिम उदयपुर
४. ढूँढाड़ी - जयपुर
५. हाड़ौती - कोटा, बूँदी, शाहपुर तथा उदयपुर
६. मेवाती - अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली (पूर्वी भाग)
७. ब्रज - भरतपुर, दिल्ली व उत्तरप्रदेश की सीमा प्रदेश
८. मालवी - झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़
९. रांगड़ी - मारवाड़ी व मालवी का सम्मिश्रण
मारवाड़ी : राजस्थान के पश्चिमी भाग में मुख्य रुप से मारवाड़ी बोली सर्वाधिक प्रयुक्त की जाती है। यह जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और शेखावटी में बोली जाती है। यह शुद्ध रुप से जोधपुर क्षेत्र की बोली है। बाड़मेर, पाली, नागौर और जालौर जिलों में इस बोली का व्यापक प्रभाव है। मारवाड़ी बोली की कई उप- बोलियाँ भी हैं जिनमें ठटकी, थाली, बीकानेरी, बांगड़ी, शेखावटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, सिरोही, गौड़वाडी, नागौरी, देवड़ावाटी आदि प्रमुख हैं। साहित्यिक मारवाड़ी को डिंगल कहते हैं। डिंगल साहित्यिक दृष्टि से सम्पन्न बोली है।
मेवाड़ी : यह बोली दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों में मुख्य रुप से बोली जाती है। इस बोली में मारवाड़ी के अनेक शब्दों का प्रयोग होता है। केवल ए और औ की ध्वनि के शब्द अधिक प्रयुक्त होते हैं।
बांगड़ी : यह बोली डूंगरपूर व बांसवाड़ा तथा दक्षिणी- पश्चिमी उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में.बोली जाती हैं। गुजरात की सीमा के समीप के क्षेत्रों में गुजराती- बाँगड़ी बोली का अधिक प्रचलन है। इस बोली की भाषागत विशेषताओं में.च, छ, का, स, का है का प्रभाव अधिक है और भूतकाल की सहायक क्रिया था के स्थान पर हतो का प्रयोग किया जाता है।
हाड़ौती : इस बोली का प्रयोग झालावाड़, कोटा, बूँदी जिलों तथा उदयपुर के पूर्वी भाग में अधिक होता है।
मेवाती : यह बोली राजस्थान के पूर्वी जिलों मुख्यतः अलवर, भरतपुर, धौलपुर और सवाई माधोपुर की करौली तहसील के पूर्वी भागों में बोली जाती है। जिलों के अन्य शेष भागों में बृज भाषा और बांगड़ी का मिश्रित रुप प्रचलन में है। मेवाती में कर्मकारक में लू विभक्ति एवं भूतकाल में हा, हो, ही सहायक क्रिया का प्रयोग होता
है।
बृज : उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे भरतपुर, धौलपुर और अलवर जिलों में यह बोली अधिक प्रचलित है।
मालवी : झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़ जिलों में मालवी बोली का प्रचलन है। यह भाग मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के समीप है।
रांगड़ी : राजपूतों में प्रचलित मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से बनी यह बोली राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
ढूँढाती : राजस्थान के मध्य-पूर्व भाग में मुख्य रुप से जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, टौंक के समीपवर्ती क्षेत्रों में ढूँढ़ाड़ी भाषा बोली जाती है। इसका प्रमुख उप-बोलियों में हाड़ौती, किशनगढ़ी,तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी, चौरासी, नागर, चौल आदि प्रमुख हैं। इस बोली में वर्तमान काल में छी, द्वौ, है आदि शब्दों का
प्रयोग अधिक होता है।
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सोमवार, 12 मई 2014

शूरवीर महाराणा प्रताप

maharana pratap
नाम - कुँवर प्रताप जी {श्री महाराणा प्रताप
सिंह जी}
जन्म - 9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमि - राजस्थान, कुम्भलगढ़
मृत्यु तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता - श्री महाराणा उदयसिंह जी
माता - राणी जीवत कँवर जी
राज्य सीमा - मेवाड़
शासन काल - 1568–1597 ई.
शा. अवधि - 29 वर्ष
वंश - सुर्यवंश
राजवंश - सिसोदिया
राजघराना - राजपूताना
धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी - उदयपुर
पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह जी
उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह जी
अन्य जानकारी - श्री महाराणा प्रताप
सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था,
जिसका नाम 'चेतक' था।‌‌‌‌‌‌‌ "राजपूत शिरोमणि श्री महाराणा प्रताप सिंह जी" उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुट मणि राणा प्रताप जी का जन्म हुआ। श्री प्रताप जी का नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है।
श्री महाराणा प्रताप जी की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। श्री महाराणा प्रताप सिंह जी के बारे में कुछ रोचक जानकारी :-
1... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर अाए| तब माँ का जवाब मिला ” उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप ये बात पढ़ सकते है |
3.... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी के भाल का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो कवच , भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था।
4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी पर श्री महाराणा प्रताप जी ने किसी की भी आधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |
6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
7.... श्री महाराणा प्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुवा हैं जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
8.... श्री महाराणा प्रताप जी ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा जी कि फौज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है मै नमन करता हूँ एसे लोगो को |
9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पायी गयी। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला |
10..... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी अस्त्र शस्त्र की शिक्षाष"श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरो को लेकर 60000 से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
11.... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो श्री महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा जी बिना भेद भाव के उन के साथ रहते थे आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत है तो दूसरी तरफ भील |
13..... राणा जी का घोडा चेतक महाराणा जी को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहा वो घायल हुआ वहीं आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की म्रत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |
14..... राणा जी का घोडा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमीत करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे |
15..... मरने से पहले श्री महाराणाप्रताप जी ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़ वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |
16.... श्री महाराणा प्रताप जी का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यानवाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ मे
    
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मंगलवार, 19 नवंबर 2013

राजस्थान के प्रमुख राजमहल(palaces)

1. हवामहल– जयपुर –महाराजाप्रताप सिंह
2. शीशमहल – आमेर – मानसिंह
3. नारायण निवास – जयपुर – नारायणसिंह
4. मुबारक महल – जयपुर – महाराजा जोधसिंह
5. रामनिवास बाग पैलेस – जयपुर – महाराजा रामसिंह
6. मोती डूंगरी महल – जयपुर – मोती सिंह जी
7. सिसोदिया रानी का बाग महल – जयपुर
8. दीवान-ए-आम – जयपुर
9. दीवान-ए-खास – जयपुर
10. सिटी पैलेस (चन्द्रमहल) – जयपुर – सवाई जयसिंह
11. जगमन्दिर महल – उदयपुर
12. जगनिवास महल – उदयपुर
13. खुशमहल – उदयपुर – राणा सज्जनसिंह
14. जूना महल – डूँगरपुर
15. फूल महल – उदयपुर – राणा अभयसिंह
16. राणा कुम्भा महल – चित्तौड़गढ़
17. विजय विलास – अलवर
18. सरिस्का पैलेस – सरिस्का (अलवर)
19. सिटी पैलेस – अलवर
20. विजय मन्दिर पैलेस – अलवर
21. खेतडी महल – खेतडी
22. लालगढ़ महल – बीकानेर
23. अनूप महल – बीकानेर – महाराजा अनूप सिंह
24. बादल महल – जैसलमेर
25. जवाहर महल – जैसलमेर
26. उम्मेद भवन पैलेस – जोधपुर शेरशाह सूरी
27. तुलाती महल – जोधपुर
28. गोपाल भवन महल (डींग महल) – डींग (भरतपुर)
29. छत्रमहल – बूँदी
30. सूरज महल – भरतपुर
31. मान महल – पुष्कर अजमेर
32. सुजान महल – तारागढ़ अजमेर
33. गोल महल – उदयपुर
34. एक थम्बिया महल – डूँगरपुर
35. बीजोलोई महल – कायलाना पहाड़ी जोधपुर
36. काठकारैन बसेरा महल – झालावाड़
37. खातर महल – चित्तौड़गढ़
38. झालीरानी का महल – कटारगढ़ (राजसमन्द)
39. पुष्पक महल – रणथम्भौर (सवाई माधोपुर)
40. सुख महल – बूंदी
41. चैखले महल – जोधपुर
42. शीलादेवी महल – अलवर
43. गुलाब महल – जेलसिंह के काल कोटा दुर्ग मे


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बुधवार, 28 मार्च 2012

RTDC HOTELS Network ,Rajasthan

 RTDC Network ,Rajasthan HOTELS

Ø Ajmer -  1 hotel khadim
                  2 hotel khidmat
Ø Alwar –  hotel Meenal
Ø Alwar-sriska – hotel tiger den
Ø Alwar-siliserh- hotel lake palace
Ø Bharatpur- hotel saras
Ø Bikaner- hotel dhola maru
Ø Bundi-hotel vrindawati
Ø Chittogarh- hotel panna
Ø Fatehpur(sikar)-hotel haveli
Ø Jaipur-1hotel gangaur
               2hotel teej
               3 hotel swagatam
               4 jaipur tourist hotel
Ø Jaipur(ramgarh-lake)-jheel tourist village
Ø Jaipur(nahargarh fort)-durg cafeteria
Ø Jaisalmer-hotel moomal
Ø Jhalawar-hotel chandravati
Ø Jodhpur-hotel ghoomar
Ø Kota- hotel Chambal
Ø Mount abu- hotel shikhar
Ø Nagaur-hotel kurja
Ø Nathdwara-hotel gokul
Ø Pali- hotel panihari
Ø Pushkar-1 hotel sarovar
                  2 pushkar tourist village
Ø Ranakpur-hotel shilpi
Ø Rishabhdeo-hotel gavri
Ø Sawai madhopur-1  hotel castle
                               2 hotel vinayak
Ø Udaipur- hotel kajri
Ø Haldighati Udaipur-chetak rest house
                                         MOTELS
Ø Behror- motel sawan bhadon
Ø Barr(Jaipur-jodhpur)-motel barr
Ø Deeg(bharatpur)-motel deeg
Ø Deogarh-motel deogarh
Ø Dholpur-motel dholpur
Ø Gulabpura(Jaipur-bhilwara-chittor)-motel gulabpura
Ø Menal(bhilwara-chittor) –motel menal
Ø Mahuwa-motel mahuwa
Ø Pokaran-motel godavan
Ø Ratangarh-motel chinkara
Ø Ratanpur-motel ratanpur
Ø Shahpura-motel shahpura
rtdc hotelrtdc hotel gangaurrtdc hotel sariskartdc hotel jhalawarrtdc hotels in ranthamborertdc hotel sarovar pushkarrtdc hotels for leasertdc hotel khadim ajmerrtdc hotel in pushkarrtdc hotel nathdwarartdc hotel in mount aburtdc hotel kajrirtdc hotel near mertdc hotel pannartdc hotel swagatam jaipurrtdc hotel barrtdc hotel at jaisalmerrtdc hotel in palirtdc hotel teej jaipurrtdc hotel sarovarrtdc hotel at udaipurrtdc hotel ajmerrtdc hotel at ranthamborertdc hotel at mount aburtdc hotel anand bhawan udaipurrtdc hotel abu roadrtdc hotel at sariskartdc hotel at bikanerrtdc hotel at ranakpurrtdc hotel auctionrtdc hotel aburtdc hotel anand bhawanrtdc hotels at chittorgarhrtdc khadim hotel ajmer rajasthanrtdc swagatam hotel at jaipurrtdc hotel bookingrtdc hotel booking udaipurrtdc hotel bundi rajasthanrtdc hotel booking cancellationrtdc hotel bhilwarartdc hotel barmerrtdc motel behrorrtdc bharatpur hotel sarasrtdc hotel saras bharatpur rajasthanrtdc ranthambore hotel bookingrtdc hotel jhoomar baorirtdc hotel in bikaner tariffrtdc hotel dhola maru bikanerrtdc hotel chittorgarhrtdc hotel chambal kotartdc hotel chandrawati jhalawarrtdc hotel castle jhoomar baori in ranthamborertdc hotel cancellationrtdc hotel castle jhoomar baorirtdc hotel panna chittorgarh rajasthanrtdc hotel panna chittorgarhrtdc hotel gangaur contactrtdc hotel moomal jaisalmer contact numberrtdc hotel shikhar mount abu contactrtdc hotel dholpurrtdc hotel discountsrtdc hotel dhola marurtdc hotel tiger den sariskartdc hotel sam dhanirtdc hotel in dungarpurrtdc hotel tiger denrtdc hotel in delhirtdc hotel tiger den reviewsrtdc hotel in sam sand dunesrtdc hotelrtdc hotel in jaipurrtdc hotel gangaur jaipur rajasthanrtdc hotel in udaipurrtdc hotel in jaisalmerrtdc hotel teejrtdc hotel in ranthamborertdc hotel swagatam jaipur rajasthanrtdc hotel in jodhpurrtdc hotel booking onlinertdc hotel vinayakrtdc hotel vinayak sawai madhopur rajasthanrtdc hotel in sariskartdc hotel shikhar mount aburtdc hotel in bikanerrtdc hotel vinayak ranthambore online bookingrtdc hotel ghoomar jodhpurrtdc hotel haveli fatehpurrtdc hotel nahargarh fortrtdc hotel gangaur jaipur tariffrtdc hotel gokul nathdwarartdc hotel gangaur gopalbari jaipur rajasthanrtdc hotel gangaur jaipur reviewrtdc hotel ghoomarrtdc ghoomar hotel jodhpur tariffrtdc heritage hotels in udaipurrtdc heritage hotels in jaipurrtdc hotel in kumbhalgarhrtdc hotel in bharatpur bird sanctuaryrtdc hotel in kotartdc hotel in chittorgarhrtdc hotel in nathdwarartdc hotel in siliserhrtdc hotel jaipurrtdc hotel jaipur rajasthanrtdc hotel jhunjhunu rajasthanrtdc hotel jaipur teejrtdc hotel jobsrtdc hotels jaisalmer moomalrtdc hotels jaipur tariffrtdc hotel jaisalmerrtdc hotel khadimrtdc hotel kajri in udaipurrtdc hotel kotartdc hotel kajri in udaipur rajasthanrtdc hotel kota rajasthanrtdc hotel kumbhalgarhrtdc hotel khasa kothirtdc hotel kolkata west bengalrtdc khasa kothi hotel jaipurrtdc hotel listrtdc hotel lake palace in alwarrtdc hotel loginrtdc hotel siliserh lakertdc hotel on leasertdc hotel rate list
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USTA ART OF BIKANER बीकानेर की प्रसिद्ध उस्ता कला

USTA ART OF BIKANER  बीकानेर की प्रसिद्ध उस्ता कला 

बीकानेर में की जाने वाली ऊँट की खाल पर स्वर्ण मीनाकारी और मुनव्वत का कार्य 'उस्ता कला' के नाम से जाना जाता है। उस्ता कलाकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां देश विदेश में अत्यंत प्रसिद्ध है। इसमें ऊँट की खाल से बनी कुप्पियों पर दुर्लभ स्वर्ण मीनाकारी का कलात्मक कार्य किया जाता है जो अत्यंत आकर्षक एवं मनमोहक होता हैं। शीशियों, कुप्पियों, आईनों, डिब्बों, मिट्टी की सुराही आदि पर यह कला उकेरी जाती है। ऊँट की खाल पर सुनहरी मीनाकारी की इस अद्वितीय उस्ता कला का विकास पद्मश्री से 1986 में सम्मानित बीकानेर के सिद्धहस्त कलाकार स्व. हिसामुद्दीन उस्ता ने किया था। उनको 1967 में राष्ट्रीय पुरस्कार से भी विभूषित किया गया था। बीकानेर के उस्ता मौहल्ले में आज भी अनेक कलाकार उस्ता कला का कार्य कर रहे हैं। उस्ता कला को कई अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किया जा चुका है।
(bikaner's usta arts)usta golden art bikaner rajasthanusta art in bikanerusta art of bikanerusta art bikaner rajasthanबीकानेर की प्रसिद्ध उस्ता कला
उस्ताकला 
दिल्ली के प्रगति मैदान तथा अन्य बड़े शहरों में आयोजित होने वाले हस्तशिल्प मेलों में भी कई उस्ता कलाकार शामिल होते हैं तथा अपनी कला के जौहर का प्रदर्शन करते हैं। देश के विभिन्न भागों के शोरूम में भी उस्ता कलाकृतियां सज्जित देखी जा सकती है। इस कला में सराहनीय कार्य के लिए हिसामुद्दीन उस्ता के शिष्य मोहम्मद हनीफ उस्ता को राष्ट्रीय पुरस्कार तथा मोहम्मद असगर उस्ता और अजमल हुसैन उस्ता को राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। पद्मश्री हिसामुद्दीन उस्ता के पौत्र मोहम्मद जमील उस्ता अभिनव प्रयोग कर इस कला के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य कर रहें हैं।
जमील उस्ता दो बार राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर के सदस्य रह चुके हैं तथा इस कला में नए आयाम खोजने में जुटे हैं। बीकानेर का "केमल हाइड ट्रेनिंग सेंटर" उस्ता कला का प्रशिक्षण संस्थान है। उस्ता मूल रूप से चित्रकार थे। कहा जाता है कि बीकानेर के छठे राजा रायसिंह तथा कर्ण सिंह कुछ उस्ता चित्रकारों को मुगल दरबार से बीकानेर लाए थे। उन्हें वहाँ राजकीय चित्रकार का ओहदा दिया था। उनमें उस्ता अलीरजा, उस्ता हामिद रजा तथा रूकनुदीन प्रमुख थे। उस्ता अली रजा ने कर्णसिंह के शासन काल में भगवान लक्ष्मीनारायण के मंदिर को चित्रांकित किया था। इसी प्रकार महाराजा अनूपसिंह के युग में रूकनुदीन ने रसिक प्रिया के 187 चित्र बनाए थे। इसके अलावा कई उस्ता चित्रकारों ने बीकानेर के महलों में विभिन्न प्रकार के चित्रों से छतों, मेहराबों, गुबंदों, स्तम्भों आदि को बेमिसाल चित्रों से सज्जित किया था। बीकानेर के दरबार हॉल चन्द्रमहल गैलरी, शीश महल, अनूप महल, गज मन्दिर, लाल निवास, डूंगर निवास, सूरत विलास, भांडाशाह मंदिर आदि की चित्रकला उस्ता कला के नमूने हैं। उस्ता अली रजा, शाह मोहम्मद, उस्ताद ईसा, मुहम्मद रूकनूदीन, इब्राहिम शहाबुदीन अहमद, अब्दुल्ला, हाशिम, कासिम हसन रजा, बहाउदीन, हमीद, नत्थूजी, कादिर बक्श, मुराद बक्श, उस्मान, रहीम, इमामुदीन आदि कई कलाकार इस कला की लम्बी श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी रहे है। उस्ता जाति के कलाकारों ने इस कला को पीढ़ी दर पीढ़ी चलाते हुए सदियों तक सँजोए रखा तथा वे अपनी इस कला से महलों, हवेलियों, मंदिरों इत्यादि को चित्रकला के चित्ताकर्षक इन्द्रधनुषी रंग प्रदान करते रहे। कालांतर में यही उस्ता चित्रकला ऊँट की खाल पर स्वर्ण मीनाकारी के रूप में विकसित हुई तथा उसने हस्त शिल्प की एक नई शैली का रूप लिया।

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