• कठपुतली चित्र

    राजस्थानी कठपुतली नृत्य कला प्रदर्शन

रविवार, 12 अप्रैल 2015

राजस्थान के प्रमुख नगरो के उपनाम

अभ्रक की मण्डी - भीलवाड़ा
आदिवासीयो का शहर , सौ द्वीपों का शहर- बाँसवाड़ा 
राजस्थान का शिमला -माउंट आबू
अन्न का कटोरा - श्री गंगानगर
औजारो का शहर - नागौर
आइसलैण्ड आॅफ ग्लोरी - जयपुर
उध्यानो,बगीचो का शहर - कोटा
ऊन का घर - बीकानेर
ख्वाजा की नगरी - अजमेर
गलियो का शहर - जैसलमेर
गुलाबी नगरी - जयपुर
घंटियो का शहर - झालरापाटन
छोटी काशी - बुन्दी
जलमहलो की नगरी - डीग
झीलो की नगरी - उदयपुर
वस्त्र नगरी - भीलवाड़ा
देवताओं की उपनगरी - पुष्कर
नवाबो का शहर - टोंक
पूर्व का  पेरिस - जयपुर
पूर्व का वेनिस - उदयपुर
पहाड़ो की नगरी - डुंगरपुर
भक्ति व साधना की नगरी - मेड़तासिटी
मूर्तियो का खजाना - तिमनगढ़ , करौली
मरुस्थल की शोभा - रोहिड़ा
राजस्थान की मरुनगरी - बीकानेर
राजस्थान का ह्रदय - अजमेर
राजस्थान का प्रवेश द्धार - भरतपुर
राजस्थान का सिंह द्धार - अलवर
राजस्थान का अन्न भण्डार - गंगानगर
राजस्थान की स्वर्णनगरी - जैसलमेर
राजस्थान की शिक्षा की राजधानी - अजमेर
राजस्थान का कश्मीर - उदयपुर
राजस्थान का काउंटर मेग्नेट - अलवर 
राजस्थान की मरुगंगा - इन्दिरा गाँधी नहर
पश्चिम राजस्थान की गंगा - लुणी नदी
राजस्थान की मोनालीसा - बणी ठणी
रेगिस्तान का सागवान - रोहिड़ा
राजस्थान का खजुराहो - भण्डदेवरा
राजस्थान का कानपुर - कोटा
राजस्थान का नागपुर - झालावाड़
राजस्थान का राजकोट - लुणकरणसर
राजस्थान का स्कॉटलैण्ड -अलवर
राजस्थान की धातु नगरी - नागौर
राजस्थान का आधुनिक विकास तीर्थ - सूरतगढ़
राजस्थान का पँजाब - साँचौर
राजस्थान की अणुनगरी - रावतभाटा , बेगूँ 
राजस्थान का हरिद्धार - मातृकुण्डिया , चित्तौड़गढ़
राजस्थान का अण्डमान - जैसलमेर
राजपुताना की कूँची - अजमेर
राजस्थान का मेनचेस्टर - भीलवाङा
राजस्थान का जिब्राल्टर - तारागढ़ , अजमेर
राजस्थान का ताजमहल - जसवंतथड़ा , जोधपुर
राजस्थान का भुवनेश्वर - ओसियाँ
राजस्थान की साल्टसिटी - साँभर
राजस्थान की न्यायायिक राजधानी - जोधपुर
राजस्थान का चेरापूँजी - झालावाड़
राजस्थान की डल झील - माउण्ट आबू
राजस्थान का गौरव - चित्तौड़गढ़
मेवाङ का मैराथन-दिवेर
प्राचीन भारत का टाटानगर - रैढ ( टोंक)
             ऐसो मेरो राजस्थान।
             पधारो म्हारे देश ।।


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राजस्थान के प्रमुख अनुसंधान केन्द्रो के नाम

1. राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र - सेवर जिला भरतपुर
2. केन्द्रीय सूखा क्षेत्र अनुसंधान संस्थान - CAZRI- जोधपुर
3. केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान - अविकानगर जिला टौंक
4. केन्द्रीय ऊँट अनुसंधान संस्थान - जोहड़बीड़, बीकानेर
5. अखिल भारतीय खजूर अनुसंधान केन्द्र - बीकानेर
6. राष्ट्रीय मरुबागवानी अनुसंधान केन्द्र - बीकानेर
7. राष्ट्रीय घोड़ा अनुसंधान केन्द्र - बीकानेर
8. सौर वेधशाला - उदयपुर
9. राजस्थान कृषि विपणन अनुसंधान संस्थान - जयपुर
10. केन्द्रीय पशुधन प्रजनन फार्म - सूरतगढ़ जिला गंगानगर
11. राजस्थान राजस्व अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान - अजमेर
12. राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान - उदयपुर
13. सुदूर संवेदन केन्द्र - जोधपुर
14. माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं सर्वेक्षण संस्थान - उदयपुर
15. राष्ट्रीय मसाला बीज अनुसंधान केन्द्र - अजमेर
16. राष्ट्रीय आयुर्वेद शोध संस्थान - जयपुर
17. केन्द्रीय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग शोध संस्थान (सीरी) - पिलानी
18. अरबी फारसी शोध संस्थान - टौंक
19. राजकीय शूकर फार्म - अलवर
20. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान - अविकानगर, मालपुरा टौंक
21. बकरी विकास एवं चारा उत्पादन परियोजना, स्विट्जरलैंड के सहयोग से - रामसर, अजमेर
22. केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड - जोधपुर
23. राज्य स्तरीय भेंस प्रजनन केन्द्र - वल्लभनगर उदयपुर
24. भेड़ रोग अनुसंधान प्रयोगशाला - जोधपुर
25. भेड़ एवं ऊन प्रशिक्षण संस्थान - जयपुर
26. शुष्क वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुर { ARID FOREST RESEARCH INSTITUTE (AFRI)} ORGANISATION
प्रमुख गौवंश नस्ल अनुसंधान केन्द्र-
1. गिर - डग, झालावाड़
2. जर्सी गाय - बस्सी, जयपुर
3. मेवाती - अलवर
4. थारपारकर - सूरतगढ़, गंगानगर
5. हरियाणवी - कुम्हेर, भरतपुर
6. राठी - नोहर, हनुमानगढ़
7. नागौरी - नागौर
8. थारपारकर - चांदन, जैसलमेर
प्रमुख भेड़ नस्ल अनुसंधान केन्द्र-
1. बाँकलिया - नागौर
2. फतहपुर सीकर
3. चित्तौड़गढ़
4. जयपुर
राज्य के अश्व विकास केन्द्र-
1. बिलाड़ा, जोधपुर
2. सिवाना, बाड़मेर { मालानी घोड़ों के लिए }
3. मनोहरथाना, झालावाड़
4. बाली, पाली
5. जालोर
6. पाली
7. चित्तौड़
8. उदयपुर
9. जयपुर
10. बीकानेर

RAJASTHAN GK TOPIC WISE

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रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।

रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
माथे बोर, नाक में नथनी, नोसर हार गलै में जी,
झाला, झुमरी, टीडी भलको, हाथा में हथफूल जी।
टूसी, बिंदी, बोर, सांकली, कर्ण फूल कानामें जी,
कंदोरो, बाजूबंद सोवे, रुण-झुण बाजे पायल जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थानजी ।
रसमलाई, राजभोग औ कलाकंद, खुरमाणी जी,
कतली, चमचम, चंद्रकला औ मीठी बालूशाही जी।
रसगुल्ला, गुलाब जामुन औ प्यारी खीर- जलेबी जी,
दाल चूरमो , घी और बाटी सगला रे मन भावे जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थानजी ।
कांजी बड़ा दाल को सीरो, केर-सांगरी साग जी,
मोगर, पापड़, दही बड़ा औ नमकीन गट्टा भात जी।
तली ग्वारफली और पापड़, केरिया रो अचार जी,
घणे चाव से बणे रसोई, कर मनवार जिमावे जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
काली ऊमटे जद, बोलण लागे मौर जी,
बिरखा के आवण री बेला, चिड़ी नहावे रेत जी।
खड़ी खेत के बीच मिजाजण , कजरी गावे जी,
बादीलो घर आसी कामण, मेडी उड़ावे काग जी।
रंग रंगीलो सबसे प्यारो म्हारो राजस्थान जी ।
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"POMCHA" - A Famous odhani of rajasthan (पोमचा - राजस्थान की एक प्रसिद्ध ओढ़नी)-Rajasthan Gk

"पोमचा" - राजस्थान की एक प्रसिद्ध ओढ़नी

◆ राजस्थान में स्त्रियों की ओढ़नियों मे तीन प्रकार की रंगाई होती है- पोमचा, लहरिया और चूंदड़।

◆ पोमचा पद्म या कमल से संबद्ध है, अर्थात इसमें कमल के फूल बने होते हैं। यह एक प्रकार की ओढ़नी है।

◆ वस्तुतः पोमचा का अर्थ कमल के फूलके अभिप्राय से युक्त ओढ़नी है। यह मुख्यतः दो प्रकार से बनता है- 1. लाल गुलाबी 2. लाल पीला। 


◆ इसकी जमीन पीली या गुलाबी हो सकती है।इन दोनो ही प्रकारों के पोमचो में चारो ओर का किनारा लाल होता है तथा इसमें लाल रंग से ही गोल फूल बने होते हैं। 

Pomcha
POMCHA पोमचा राजस्थान की एक ओढनी
◆ यह बच्चे के जन्म के अवसर पर पीहर पक्ष की ओर से बच्चे की मां को दिया जाता है।

सूर्य पूजन के समय बच्चे का नए वस्त्रों के साथ नवप्रसूता को मायके से भेजा गया  लिए विशेष परिधान  " पीला " पहनना आवश्यक होता है, जो उनके चेहरे की पीतवर्ण आभा को और अधिक सुवर्णमय बनाता है

◆ पीले अथवा नारंगी रंग की पृष्ठभूमि के साथ लाल बॉर्डर इस परिधान की विशेषता है। इस पर भी आरी तारी की कढ़ाई के साथ बेल बूटे होते हैं।जगमग बेल बूटों की  कढ़ाई के साथ लाल और पीले रंग में रंग पीला साडी या ओढ़नी पहनकर जच्चा जब गोद में बच्चे को लेकर पूजन करती है तो उसके चेहरे पर वात्सल्य की आभा और अभिमान की छटा देखते ही बनती है ! इसके बाद अन्य पूजन अथवा शुभ कार्यों में माएं चुन्दडी के स्थान पर पीले का प्रयोग भी करती हैं।

◆ पुत्र का जन्म होने पर पीला पोमचा तथा पुत्री के जन्म पर लाल पोमचा देने का रिवाज है। 

◆ पोमचा राजस्थान में लोकगीतों का भी विषय है।पुत्र के जन्म के अवसर पर "पीला पोमचा" का उल्लेख गीतों में आता है। एक गीत के बोल इस तरह है-
" भाभी पाणीड़े गई रे तलाव में, भाभी सुवा तो पंखो बादळ झुकरया जी।
     देवरभींजें तो भींजण दो ओदेवर और रंगावे म्हारी मायड़ली जी।।"

अर्थात देवरकहता है कि भाभी तुम पानी लेने जा रही हो परंतु घटाएं घिर रही है, तुम्हारा पीला भीग जाएगा, रंगचूने लगेगा। तब भाभी कहती है कि कोई बात नहीं देवर मेरी मां फिर से रंगवा देगी।

◆ एक अन्य गीत में नवप्रसूता अपने पति से पिला रंगवाने को कहती है-
पिळो रंगावो जी
पाँच मोहर को साहिबा पिळो रंगावो जी
हाथ बतीसी गज बीसी गाढा मारू जी
पिळो रंगावो जी

दिल्ली सहर से साईबा पोत मंगावो जी
जैपर का रंगरेज बुलावो गाढा मारू जी
पिळो रंगावो जी
◆ एक अन्य गीत में नवप्रसूता पत्नी अपने पति से पीला रंगवाने का अनुरोध करती है।
" बाईसा रा वीरा, पीलो धण नै केसरी रंगा दो जी।"


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सोमवार, 30 मार्च 2015

ऊँचा-ऊँचा धोरा अठै, लाम्बो रेगिस्तान।

ऊँचा-ऊँचा धोरा अठै, लाम्बो रेगिस्तान।
कोसां कोस रुंख कोनी, तपतो राजस्थान।।
फोगला अर कैर अठै, करै भौम पर राज।
गोडावणरा जोङा अठै, मरुधर रा ताज।।
कुंवा रो खारो पाणी, पीवै भैत मिनख।
मेह रो पालर पाणी, ब्होत जुगत सूं रख।।
कोरी कोरी टीबङी, उङै रेत असमान।
सणसणाट यूं बाज रही, जणुं सरगम रा गीत।।
सोनै ज्यूं चमके रेत, चाँदनी रातां में। रेत
री महिमा गावै, चारण आपरी बातां में।।
इटकण मिटकण दही चटोकण, खेलै बाल गोपाल अठै।
गुल्ली डंडा खेल प्यारा, कुरां कुरां और कठै।।
अरावली रा डोंगर ऊंचा, आबू शान मेवाङ री।
चम्बल घाटी तिस मिटावै, माही जान मारवाङ री।।
हवेलियाँ निरखो शेखावाटी री, जयपुर में हवामहल।
चित्तौङ रा दुर्ग निरखो, डीग रा निरखो जलमहल।।
संगमरमर बखान करै, भौम री सांची बात।
ऊजळै देश री ऊजळी माटी, परखी जांची बात।।
धोरा देखो थार रा, कोर निकळी धोरां री।
रेत चालै पाणी ज्यूं, पून चालै जोरां री।।
भूली चूकी मेह होवै, बाजरा ग्वार उपजावै।
मोठ मूँग पल्लै पङे तो, सगळा कांख बजावै।।
पुष्कर रो जग में नाम, मेहन्दीपुर भी नाम कमावै।
अजमेर आवै सगळा धर्मी, रुणेचा जातरु पैदल जावै।।
रोहिङै रा फूल भावै, रोहिङो खेतां री शान।
खेजङी सूँ याद आवै, अमृता बाई रो बलिदान।
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शनिवार, 1 नवंबर 2014

राजस्थान कीप्रमुख बोलिया

राजस्थान की प्रमुख बोलिया
भारत के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में कई बोलियाँ बोली जाती हैं। वैसे तो समग्र राजस्थान में हिन्दी बोली का प्रचलन है लेकिन लोक-भाषएँ जन सामान्य पर ज्यादा प्रभाव डालती हैं। जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों के पारस्परिक संयोग एवं सम्बन्धों के विषय में लिखा तथा वर्गीकरण किया है ग्रियर्सन का वर्गीकरण इस प्रकार है :-
१. पश्चिमी राजस्थान में बोली जाने वाली बोलियाँ - मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी,
बीकानेरी, बाँगड़ी, शेखावटी, खेराड़ी, मोड़वाडी, देवड़ावाटी आदि।
२. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - अहीरवाटी और मेवाती।
३. मध्य-पूर्वी राजस्थानी बोलियाँ - ढूँढाड़ी, तोरावाटी, जैपुरी, काटेड़ा, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़, नागर चोल, हड़ौती।
४. दक्षिण-पूर्वी राजस्थान - रांगड़ी और सोंधवाड़ी
५. दक्षिण राजस्थानी बोलियाँ - निमाड़ी आदि।
मोतीलाल मेनारिया के मतानुसार राजस्थान की निम्नलिखित बोलियाँ हैं :-
१. मारवाड़ी
२. मेवाड़ी
३. बाँगड़ी
४. ढूँढाड़ी
५. हाड़ौती
६. मेवाती
७. ब्रज
८. मालवी
९. रांगड़ी
बोलियाँ जहाँ बोली जाती हैं :-
१. मारवाड़ी - जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर व शेखावटी
२. मेवाड़ी - उदयपुर, भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़
३. बाँगड़ी - डूंगरपूर, बाँसवाड़ा, दक्षिण-पश्चिम उदयपुर
४. ढूँढाड़ी - जयपुर
५. हाड़ौती - कोटा, बूँदी, शाहपुर तथा उदयपुर
६. मेवाती - अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली (पूर्वी भाग)
७. ब्रज - भरतपुर, दिल्ली व उत्तरप्रदेश की सीमा प्रदेश
८. मालवी - झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़
९. रांगड़ी - मारवाड़ी व मालवी का सम्मिश्रण
मारवाड़ी : राजस्थान के पश्चिमी भाग में मुख्य रुप से मारवाड़ी बोली सर्वाधिक प्रयुक्त की जाती है। यह जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और शेखावटी में बोली जाती है। यह शुद्ध रुप से जोधपुर क्षेत्र की बोली है। बाड़मेर, पाली, नागौर और जालौर जिलों में इस बोली का व्यापक प्रभाव है। मारवाड़ी बोली की कई उप- बोलियाँ भी हैं जिनमें ठटकी, थाली, बीकानेरी, बांगड़ी, शेखावटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, सिरोही, गौड़वाडी, नागौरी, देवड़ावाटी आदि प्रमुख हैं। साहित्यिक मारवाड़ी को डिंगल कहते हैं। डिंगल साहित्यिक दृष्टि से सम्पन्न बोली है।
मेवाड़ी : यह बोली दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों में मुख्य रुप से बोली जाती है। इस बोली में मारवाड़ी के अनेक शब्दों का प्रयोग होता है। केवल ए और औ की ध्वनि के शब्द अधिक प्रयुक्त होते हैं।
बांगड़ी : यह बोली डूंगरपूर व बांसवाड़ा तथा दक्षिणी- पश्चिमी उदयपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में.बोली जाती हैं। गुजरात की सीमा के समीप के क्षेत्रों में गुजराती- बाँगड़ी बोली का अधिक प्रचलन है। इस बोली की भाषागत विशेषताओं में.च, छ, का, स, का है का प्रभाव अधिक है और भूतकाल की सहायक क्रिया था के स्थान पर हतो का प्रयोग किया जाता है।
हाड़ौती : इस बोली का प्रयोग झालावाड़, कोटा, बूँदी जिलों तथा उदयपुर के पूर्वी भाग में अधिक होता है।
मेवाती : यह बोली राजस्थान के पूर्वी जिलों मुख्यतः अलवर, भरतपुर, धौलपुर और सवाई माधोपुर की करौली तहसील के पूर्वी भागों में बोली जाती है। जिलों के अन्य शेष भागों में बृज भाषा और बांगड़ी का मिश्रित रुप प्रचलन में है। मेवाती में कर्मकारक में लू विभक्ति एवं भूतकाल में हा, हो, ही सहायक क्रिया का प्रयोग होता
है।
बृज : उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे भरतपुर, धौलपुर और अलवर जिलों में यह बोली अधिक प्रचलित है।
मालवी : झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़ जिलों में मालवी बोली का प्रचलन है। यह भाग मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के समीप है।
रांगड़ी : राजपूतों में प्रचलित मारवाड़ी और मालवी के सम्मिश्रण से बनी यह बोली राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में बोली जाती है।
ढूँढाती : राजस्थान के मध्य-पूर्व भाग में मुख्य रुप से जयपुर, किशनगढ़, अजमेर, टौंक के समीपवर्ती क्षेत्रों में ढूँढ़ाड़ी भाषा बोली जाती है। इसका प्रमुख उप-बोलियों में हाड़ौती, किशनगढ़ी,तोरावाटी, राजावाटी, अजमेरी, चौरासी, नागर, चौल आदि प्रमुख हैं। इस बोली में वर्तमान काल में छी, द्वौ, है आदि शब्दों का
प्रयोग अधिक होता है।
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सोमवार, 12 मई 2014

शूरवीर महाराणा प्रताप

maharana pratap
नाम - कुँवर प्रताप जी {श्री महाराणा प्रताप
सिंह जी}
जन्म - 9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमि - राजस्थान, कुम्भलगढ़
मृत्यु तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता - श्री महाराणा उदयसिंह जी
माता - राणी जीवत कँवर जी
राज्य सीमा - मेवाड़
शासन काल - 1568–1597 ई.
शा. अवधि - 29 वर्ष
वंश - सुर्यवंश
राजवंश - सिसोदिया
राजघराना - राजपूताना
धार्मिक मान्यता - हिंदू धर्म
युद्ध - हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी - उदयपुर
पूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंह जी
उत्तराधिकारी - राणा अमर सिंह जी
अन्य जानकारी - श्री महाराणा प्रताप
सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था,
जिसका नाम 'चेतक' था।‌‌‌‌‌‌‌ "राजपूत शिरोमणि श्री महाराणा प्रताप सिंह जी" उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुट मणि राणा प्रताप जी का जन्म हुआ। श्री प्रताप जी का नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है।
श्री महाराणा प्रताप जी की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। श्री महाराणा प्रताप सिंह जी के बारे में कुछ रोचक जानकारी :-
1... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
2.... जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर अाए| तब माँ का जवाब मिला ” उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप ये बात पढ़ सकते है |
3.... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी के भाल का वजन 80 किलो था और कवच का वजन 80 किलो कवच , भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो 207 किलो था।
4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी पर श्री महाराणा प्रताप जी ने किसी की भी आधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |
6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
7.... श्री महाराणा प्रताप जी के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुवा हैं जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
8.... श्री महाराणा प्रताप जी ने जब महलो का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगो ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा जी कि फौज के लिए तलवारे बनायीं इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गड़लिया लोहार कहा जाता है मै नमन करता हूँ एसे लोगो को |
9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पायी गयी। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला |
10..... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी अस्त्र शस्त्र की शिक्षाष"श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरो को लेकर 60000 से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
11.... श्री महाराणा प्रताप सिंह जी के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो श्री महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा जी बिना भेद भाव के उन के साथ रहते थे आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत है तो दूसरी तरफ भील |
13..... राणा जी का घोडा चेतक महाराणा जी को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहा वो घायल हुआ वहीं आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की म्रत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |
14..... राणा जी का घोडा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमीत करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे |
15..... मरने से पहले श्री महाराणाप्रताप जी ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़ वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |
16.... श्री महाराणा प्रताप जी का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यानवाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ मे
    
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