बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

Adhivasis pilgrimage site of Ghotiya Ambaji-आदिवासियों की तीर्थ स्थल घोटिया आंबाजी का मेला


आदिवासियों की तीर्थ स्थली 'घोटिया आंबा' का मेला
पौराणिक महत्त्व की आदिवासियों की तीर्थ स्थली 'घोटिया आंबा' बाँसवाड़ा से
करीब 45 किमी दूर स्थित है। यह जिले की बागीदौरा पंचायत समिति के बारीगामा ग्राम पंचायत क्षेत्र अंतर्गत आता है। यह तीर्थ पाण्डवकालीन माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दिन गुजारे थे। यहाँ स्थित कुंड को पाण्डव कुंड कहा जाता है। घोटिया आंबा में प्रतिवर्ष चैत्र माह में एक विशाल मेला लगता है जिसमें भारी संख्या में आदिवासी भाग लेते हैं। वेणेश्वर के पश्चात यह राज्य का आदिवासियों की दूसरा बड़ा मेला है। इस वर्ष घोटिया आंबा मेला 1 अप्रैल से प्रारंभ होकर 5 अप्रैल तक चला। दिनांक 3 अप्रैल को अमावस्या के अवसर पर मुख्य मेला भरा। इस मुख्य मेले में मेलार्थियों का भारी सैलाब उमड़ा और यहाँ घोटेश्वर शिवालय तथा मुख्यधाम पर स्थित अन्यदेवालयों व पौराणिक पूजा-स्थलों पर श्रृद्धालुओं ने पूजा अर्चना की। वनवासियोंके इस धाम के प्रमुख मंदिर घोटेश्वर शिवालय के गर्भ गृह में पाटल वर्णी शिवलिंग के अलावा पांडवों के साथ देवी कुंती व भगवान कृष्ण की आकर्षक धवल पाषाण प्रतिमाओं के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की अपार भीड़ रही। इस अवसर पर मेलार्थियों ने आध्यामिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व की रस्में व मान्यताएँ पूरी की और साधु-संतों के दर्शन किए।
श्रद्धालुओं ने दान-पुण्य अर्जित करने में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया। मुख्य मेले में राजस्थान के अतिरिक्त मध्यप्रदेश व गुजरात राज्यों से भारी संख्या में लोग परिवार सहित पहुंचे। यहाँ स्थित महाभारतकालीन पाण्डव कुण्ड में सुबह से ही भगवान शिव, पावन गंगा मैय्या के जयकारों के स्नान करने तथा हाथ-पाँव धोने वालों का तांता लगा रहा। यहां भगवान हनुमान व वाल्मिकी मंदिर के अलावा एक अति प्राचीन नर्बदा कुंड भी है जिसका जल अपने घर ले जाने के लिए विभिन्न पात्रों में ले जाने वालों की होड़सी लगी रही। मान्यता है कि इसका जल ले जाकर परिवार के रोगी मात्र को पिलाने से दुख दर्द दूर हो जाते है। इसमें 3 व 4 अप्रैल को पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र व मीरा कला संस्थान उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में सांस्कृतिक कार्यक्रमआयोजित किए गए तथा वनवासियों के लिए वालीबाल, तीरंदाजी, भाला फेंक, रस्सा-कस्सी, कब्बडी खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर रात्रि को मुख्य मंदिर परिसर में बाबा रामदेवजी व वीर तेजाजी महाराज की कथा का आयोजन भी किया गया। धाम परिसर व पौराणिक आम्रवृक्ष के समीप व मंदिरों के आगे स्थित धूणियों एवं हवन कुण्डों में नारियल की चटखों को डालकर हवन करने का पुण्य पाने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही और हवन कुण्डों में चटखें अर्पित किए जाने से फिजाओं में सुवास घुलती रही। महाभारत कालीन पौराणिक आम्रवृक्ष के समीप स्थित धूणी को मुख्य धूणी माना जाता है। मेलार्थियों ने मुख्य मंदिर के पास स्थित धूणी पर धाम के महंत हीरागिरी महाराज का आशीर्वाद लिया। मेले में भगतों ने महंत
रामगिरी महाराज के सान्निध्य में धूणी के सम्मुख परंपरागत वाद्ययंत्रों के साथ भक्ति गीत स्वर लहरियां बिखेर कर दिन भर भजन- कीर्तन भी किए। मुख्यधाम से तीन किमी दूर पवित्र केलापानी क्षेत्र है। उल्लेखनीय है कि पांडवों द्वारा वनवास के दौरान इस क्षेत्र में आकर केलों के पत्तों पर भोजन किया था। यहां आज भी बड़े बड़े वृक्ष के उसके साक्षी प्रतीत होते हैँ। यहाँ पहाड़ से रिसकर आने वाले पवित्र जल के मुहाने पर गौमुख बना है। भक्तों ने इसके पवित्र जल का आचमन किया और घर ले जाने के लिए इस जल को पात्रों में भी भरा।


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